IAF और Indian Army ने अग्रिम ठिकानों पर किया एयरलिफ्ट अभ्यास

IAF and Indian Army conducted airlift exercises on forward bases

नई दिल्ली: IAF और Indian Army ने अग्रिम ठिकानों के पास एयरलिफ्ट अभ्यास किया। इस संयुक्त अभ्यास को ‘ऑपरेशन हरक्यूलिस’ नाम दिया गया था। इसका उद्देश्य उत्तरी क्षेत्र में रसद आपूर्ति को मजबूत करना और परिचालन क्षेत्रों में शीतकालीन स्टॉकिंग को बढ़ाना था। सेना की उत्तरी कमान के पास पाकिस्तान और चीन के साथ LoC और LaC की लगभग 1896 किलोमीटर लम्बी सीमा के साथ ही अंतरराष्ट्रीय सीमा (IB) की रक्षा करने की जिम्मेदारी है।

उत्तरी क्षेत्र में रसद आपूर्ति को मजबूत करना है उद्देशय

चीन और पाकिस्तान के साथ इन सर्दियों में भी फिलहाल तनातनी खत्म होती नहीं दिखती, इसलिए सेना और वायुसेना ने ठंड के दिनोंं में भी दोनों मोर्चे एक साथ संभालने के इरादे से खुद को तैयार किया है। इसी मकसद से दोनों सेनाओं ने पश्चिमी वायु कमान और सेना की उत्तरी कमान के अग्रिम ठिकानों के पास ‘ऑपरेशन हरक्यूलिस’ किया है। इस उच्च तीव्रता वाले एयरलिफ्ट अभ्यास का उद्देश्य उत्तरी क्षेत्र में रसद आपूर्ति को मजबूत करना और परिचालन क्षेत्रों में शीतकालीन स्टॉकिंग को बढ़ाना था। इस अभ्यास में वायुसेना के परिवहन विमान सी-17 ग्लोबमास्टर, एएन-32 और टैंकर विमान आईएल-76 शामिल थे। अग्रिम चौकियों पर तैनात सैनिकों तक सर्दियों में रसद और हथियार की आपूर्ति करने के मद्देनजर इस अभ्यास को महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

भारतीय वायु सेना की भार उठाने की क्षमता का किया गया आंकलन

एयरलिफ्ट अभ्यास में शामिल हुए विमानों ने पश्चिमी वायु कमान के एक अग्रिम बेस से उड़ान भरी थी। हालांकि किसी भी आकस्मिकता का शीघ्रता से जवाब देने की क्षमता सुनिश्चित करने में वायुसेना ने प्रमुख भूमिका निभाई है लेकिन इस अभ्यास के दौरान वास्तविक समय में भारतीय वायु सेना की भार उठाने की क्षमता का आकलन किया गया। भारतीय सेना की उत्तरी कमान ‘ऑपरेशनल कमांड’ के रूप में जानी जाती है। इस पर पाकिस्तान और चीन के साथ एलओसी और एलएसी की लगभग 1896 किलोमीटर लम्बी सीमा के साथ ही अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) की रक्षा करने की जिम्मेदारी है। इस कमान को 1947-48 ऑपरेशन, 1962 चीन के साथ संघर्ष, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध और 1999 के कारगिल ऑपरेशन का अनुभव है। पाकिस्तान के साथ करीब 20 साल से चल रहे छद्म युद्ध में भी यही कमान उलझी हुई है।

पैरा ब्रिगेड के सैनिकों की क्षमता की हुई परीक्षा

चीन के साथ तनाव के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 1 नवम्बर को 14 हजार फीट की ऊंचाई से वायुसेना के सी-130जे हरक्यूलिस और एएन-32 विमानों ने पैरा ट्रूपर्स को उतारे थे। चीन की किसी भी हरकत का त्वरित जवाब देने के लिए पैरा ब्रिगेड के सैनिकों की क्षमता देखने के लिए यह अभ्यास किया गया था। इससे पहले अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भारतीय सेना की इकलौती माउंटेन स्ट्राइक कॉर्प्स की आक्रामक क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान देने के बाद अब एलएसी पर पैरा ट्रूपर्स उतारे जाने को चीन के मुकाबले भारत की सैन्य ताकत को बढ़त के रूप में देखा जा रहा है। अब दोनों सेनाओं ने एयरलिफ्ट अभ्यास करके अपनी एक और शक्ति का प्रदर्शन किया है।

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