कीव: यूक्रेन Ukraine ने जंग के दौरान अपने दुश्मनों का चेहरा पहचानने के लिए AI (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया हैं। रूसी हमलावरों की पहचान के लिए यूक्रेन एक अमेरिकी कंपनी क्लियरव्यू AI के फेशियल रिकग्निशन सर्च इंजन की मदद ले रहा हैं। इस तकनीक से जंग में मारे गए नागरिकों और सैनिकों की अलग-अलग पहचान की जा सकती हैं।
क्लियरव्यू की CEO होन टन-थाटो ने बताया कि यूक्रेन का रक्षा मंत्रालय बीते शनिवार से हमारी तकनीक का इस्तेमाल कर रहा हैं। होन ने कहा- हमारे डेटाबेस में कुल 1 करोड़ से अधिक फोटोज हैं। इनमें 20 लाख से भी अधिक फोटोज रूसी सोशल मीडिया कोंटाक्टे (VKontakte) से जमा की गई हैं। हमारी तकनीक चेहरा खराब होने की स्थिति में भी सही पहचान करने में कारगर हैं और फिंगर प्रिंट मैचिंग से भी ज्यादा आसान हैं।
Ukraine को मुफ्त में दिया कंपनी ने अपना सर्च इंजन:
क्लियरव्यू की तकनीक का इस्तेमाल शरणार्थियों को उनके परिवारों से मिलाने, रूसी जासूसों की पहचान करने और जंग से जुड़े फेक सोशल मीडिया पोस्ट को एक्सपोज करने में किया जा रहा हैं। कंपनी के एडवाइजर ली वोलोस्की ने कहा- खास बात यह हैं कि यूक्रेन को क्लियरव्यू AI के सर्च इंजन के इस्तेमाल के लिए पैसे नहीं देने होंगे। हमने यह उसे मुफ्त में उपलब्ध कराया हैं। इस तकनीक से यूक्रेनी फोर्स चेकपॉइंट पर ही दोस्त और दुश्मन की पहचान कर पाएगी।
हालांकि, यूक्रेन की डिफेंस मिनिस्ट्री ने इस दावे पर फिलहाल कोई जवाब नहीं दिया हैं। इससे पहले, यूक्रेन के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन मिनिस्ट्री के एक प्रवक्ता ने कहा था कि वे क्लियरव्यू जैसी US बेस्ड AI कंपनियों के प्रपोजल पर गौर कर रहे हैं।
तकनीक के आलोचक भी मौजूद, बोले- एक गलती दे सकती हैं किसी को मौत:
दूसरी तरफ, न्यूयॉर्क में सर्विलांस टेक्नोलॉजी ओवरसाइट प्रोजेक्ट के CEO अल्बर्ट फॉक्स का कहना हैं कि AI की एक गलती किसी नागरिक की मौत की वजह भी बन सकती हैं। उन्होंने कहा कि क्लियरव्यू को कभी भी पहचान के अकेले सोर्स के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
जब आप ऐसे तकनीक को जंग में शामिल कर लेते हैं , तो आपके पास इसका उपयोग और दुरुपयोग करने के तरीके पर कोई नियंत्रण नहीं होता ।
कंपनी पर प्राइवेसी के उल्लंघन का आरोप:
बता दें कि क्लियरव्यू ये तकनीक मुख्य रूप से केवल अमेरिकी लॉ एनफोर्समेंट एजेंसीज को बेचता हैं। कंपनी पर प्राइवेसी राइट्स के उल्लंघन को लेकर अमेरिका में मुकदमा भी चल रहा हैं। इसमें बिना अनुमति के इंटरनेट से फोटोज चोरी करने का आरोप लगाया गया हैं।
क्लियरव्यू का तर्क हैं कि वह गूगल सर्च की तरह ही डेटा इकट्ठा करता हैं। फिर भी, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों ने इसे कानूनी तौर पर अवैध माना हैं।