लखनऊ: ताजमहल के तहखाने में बने 20 कमरों को खोलने की Petition को इलाहाबाद High Court की लखनऊ बेंच ने खारिज कर दिया। सबसे पहले गुरुवार को 12 बजे सुनवाई शुरू हुई थी। ताजमहल विवाद को लेकर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता को जमकर फटकार लगाई हैं।
जस्टिस डीके उपाध्याय ने कहा कि याचिकाकर्ता PIL व्यवस्था का दुरुपयोग न करें। पहले यूनिवर्सिटी जाएं, PhD करें, तब कोर्ट आएं। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई रिसर्च करने से रोके, तब हमारे पास आना। उन्होंने कहा कि कल को आप आएंगे और कहेंगे कि आपको जजों के चैंबर में जाना हैं, तो क्या हम आपको चैंबर दिखाएंगे? इतिहास आपके मुताबिक नहीं पढ़ाया जाएगा।
कोर्ट ने कहा- आप कौन होते हैं, यह आपका अधिकार नहीं:
ताजमहल के 20 कमरों को खोलने की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि आप एक समिति के माध्यम से तथ्यों की खोज की मांग कर रहे हैं, आप कौन होते हैं, यह आपका अधिकार नहीं हैं और न ही यह RTI अधिनियम के दायरे में है, हम आपकी दलील से सहमत नहीं हैं।
अदालत ने कहा “हमने पाया कि याचिका में नियम 226 के तहत ताजमहल के इतिहास के संबंध में अध्य्यन की मांग की गई हैं। इसके अलावा ताजमहल के अंदर बंद दरवाजों को खोलने की मांग की गई हैं।” हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में जस्टिस डीके उपाध्याय और सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने कहा “हमारी राय हैं कि याचिकाकर्ता ने पूरी तरह से गैर-न्यायसंगत मुद्दे पर फैसला देने की मांग की हैं। इस अदालत द्वारा इन याचिकाओं पर फैसला नहीं किया जा सकता हैं।
अदालत ने कहा- जहां तक ताजमहल के कमरे खोलने की मांग हैं, हमारा मानना हैं कि इसमें याचिकाकर्ता को रिसर्च करना चाहिए। हम इस रिट पिटिशन को स्वीकार नहीं कर सकते हैं।
भाजपा नेता ने डाली थी Petition:
बता दें कि भाजपा के अयोध्या मीडिया प्रभारी डॉ. रजनीश सिंह ने 7 मई को कोर्ट में याचिका दायर कर ताजमहल के 22 कमरों में से 20 कमरों को खोलने की मांग की थी। उन्होंने इन कमरों में हिंदू-देवी-देवताओं की मूर्ति होने की आशंका जताई हैं। उनका कहना हैं कि इन बंद कमरों को खोलकर इसका रहस्य दुनिया के सामने लाना चाहिए।
याचिकाकर्ता रजनीश सिंह ने इस मामले में राज्य सरकार से एक समिति गठित करने की मांग की थी। इसके बाद से ही देश में ताजमहल के कमरों के रहस्यों को लेकर एक नई बहस छिड़ी हुई हैं। वहीं, इतिहासकारों का कहना हैं कि ताजमहल विश्व विरासत हैं। इसे धार्मिक रंग नहीं देना चाहिए।
कोर्ट की निगरानी में खोलकर वीडियोग्राफी की जाए:
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के प्रोफेसर नदीम रिजवी ने ताजमहल को धार्मिक रंग दिए जाने पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि 300 साल तक ताजमहल के तहखाने और बाकी हिस्से खुले रहे। कई पीढ़ियों ने इसे देख लिया। कोई चिह्न यहां नहीं हैं। ताज के जो हिस्से बंद किए गए, वे धार्मिक कारणों से नहीं किए गए, बल्कि ताज में भीड़ और सुरक्षा कारणों से किए गए।
उन्होंने कहा कि स्मारक की संरक्षा और पर्यटकों की सुरक्षा के लिए ASI ने पूरे देश में स्मारकों के कुछ हिस्सों को बंद किया। प्रो. रिजवी ने कहा कि ताज के तहखाने खोलने में कोई हर्ज नहीं हैं, लेकिन यह कोर्ट की निगरानी में खोले जाएं और वीडियोग्राफी की जाए। तहखाने खोलने के बाद यह डर हैं कि कहीं कोई मूर्ति न रख दे और विवाद स्थायी हो जाए।
धार्मिक रंग देने की साजिश:
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर इरफान हबीब ने कहा कि ताजमहल जैसी विश्व धरोहर को धार्मिक रंग देने की साजिश हो रही हैं। मैं नहीं चाहता कि तहखाने खोले जाएं। उसका कोई प्रयोजन तो हो। यह जिस मकसद से मांग की जा रही हैं, वह गलत हैं। कोई भी कहीं से आकर मांग करेगा और उस पर आदेश हों, यह गलत हैं।
वीडियोग्राफी कराई जाए:
डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुगम आनंद ने कहा कि ताजमहल के तहखानों के सर्वे में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। एक बार वीडियोग्राफी करा ली जाए तो विवाद समाप्त हो जाएंगे। पर्यटकों के लिए तहखाने खोलना आर्कियोलॉजी के मुताबिक मुमकिन नहीं है।