नई दिल्ली: नशा Drugs करने के लिए शराब, कोकीन, भांग, चरस, गांजा और एलएसडी जैसी चीजों का भी ऑनलाइन सॉल्यूशन आ गया हैं। अब लोग मेंटल रिलीफ के लिए डिजिटल ड्रग्स लेने लगे हैं। हाल ही में युवाओं के बीच यह ट्रेंड इतना बढ़ गया हैं कि दुनियाभर के वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं। तो आइए जानते हैं डिजिटल ड्रग क्या हैं और कैसे काम करता हैं।
‘बाइनॉरल बीट्स’ को सुनकर चढ़ता हैं Drugs:
हम जिस डिजिटल ड्रग की बात कर रहे हैं, उसका साइंटिफिक नाम बाइनॉरल बीट्स हैं। यह म्यूजिक की एक कैटेगरी हैं जो यूट्यूब और स्पॉटिफाई जैसे मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आसानी से उपलब्ध हैं। यानी, अब हाई होने के लिए आपको केवल मोबाइल, हेडफोन और इंटरनेट कनेक्शन की जरूरत हैं। लोगों को ऐसे ही ऑडियो ट्रैक्स सुनकर नशा चढ़ रहा हैं।
दरअसल, बाइनॉरल का शाब्दिक अर्थ दो कान हैं और बीट्स का मतलब ध्वनि होता हैं। बाइनॉरल बीट्स एक खास प्रकार का साउंड होता हैं जिसमें आपको दोनों कानों में अलग-अलग फ्रीक्वेंसी की आवाजें सुनाई देती हैं। इससे आपका दिमाग कंफ्यूज होकर दोनों साउंड्स को एक बनाने की कोशिश करता है। ऐसा करके दिमाग में अपने आप ही तीसरा साउंड बन जाता हैं, जिसे केवल हम सुन सकते हैं। दिमाग की इस एक्टिविटी से लोग खुद को शांत, खोया हुआ और नशे की स्थिति में पाते हैं।
ये फिजिकल ड्रग्स को रेप्लीकेट करने का नया तरीका:
ड्रग एंड एल्कोहल रिव्यू जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च में वैज्ञानिकों ने बाइनॉरल बीट्स के प्रभाव को समझने की कोशिश की। 30 हजार लोगों पर हुए इस सर्वे में पता चला कि 5.3% लोग बाइनॉरल बीट्स को इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। इनकी औसत उम्र 27 साल थी और इनमें से 60.5% पुरुष थे। नतीजों की मानें तो इनमें से तीन चौथाई लोग ये आवाजें सुनकर आरामदायक नींद लेते हैं। वहीं, 34.7% लोग अपना मूड चेंज करने के लिए और 11.7% लोग फिजिकल ड्रग्स के असर को रेप्लीकेट करने के लिए बाइनॉरल बीट्स सुनते हैं।
कुछ प्रतिभागियों का तो यह भी कहना हैं कि उन्हें बाइनॉरल बीट्स के जरिए मनचाहे सपने दिखते हैं और वे डीएमटी जैसे ड्रग के असर को बढ़ाने के लिए डिजिटल ड्रग्स को सप्लिमेंट के तौर पर लेते हैं। जहां करीब 50% लोग इस ऑडियो को 1 घंटा सुनते हैं, वहीं 12% लोग 2 घंटे से भी ज्यादा समय तक डिजिटल ड्रग्स में खो जाना पसंद करते हैं। फिलहाल यह ट्रेंड सबसे ज्यादा अमेरिका, मेक्सिको, ब्राजील, रोमानिया, पोलैंड और ब्रिटेन में देखा जा रहा हैं।
पहली बार 2010 में सामने आए थे मामले:
जानकारी के मुताबिक, डिजिटल ड्रग का पहला मामला साल 2010 में तब सामने आया था, जब अमेरिका के ओक्लाहोमा शहर में रहने वाले 3 बच्चे स्कूल में नशे में धुत नजर आ रहे थे। उन्होंने प्रिंसिपल के सामने ये कबूल किया था कि वे इंटरनेट से बाइनॉरल बीट्स को डाउनलोड करके सुन रहे हैं। उस वक्त ये बीट्स बनाने वाली i-doser वेबसाइट का नाम सुर्खियों में था। दरअसल, इस वेबसाइट का दावा हैं कि इसके 80% यूजर्स को बाइनॉरल बीट्स का असर होता ही हैं।
बच्चों पर डिजिटल ड्रग्स के असर को देखते हुए ओक्लाहोमा ब्यूरो ऑफ नार्कोटिक्स ने लोगों को चेतावनी दी थी। इसके कुछ सालों बाद युवाओं में बाइनॉरल बीट्स की लत बढ़ने के कारण UAE और लेबनान जैसे देशों ने भी इसे बैन करने की मांग की थी।