मास्को: रूसी सोवियत संघ के आखिरी President रहे चर्चित नेता Mikhail Gorbachev का मंगलवार को निधन हो गया, वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उन्होंने 91 साल की उम्र में अंतिम सांस ली है। मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ के अंतिम राष्ट्रपति थे। राष्ट्रपति बनने से पहले वह सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव भी थे। अलावा इसके वह कई बड़े पदों पर रहे।
बिना युद्ध किए शीत युद्ध को खत्म करा दिया
दरअसल, रूसी समाचार एजेंसी स्पुतनिक ने सेंट्रल क्लिनिकल अस्पताल के एक बयान के हवाले से बताया है कि लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया है। हालांकि इसके अलावा कोई और जानकारी नहीं दी गई है। मिखाइल गोर्बाचेव के बारे में यह कहा जाता है कि उन्होंने बिना युद्ध किए ही शीत युद्ध को खत्म करा दिया था। हालांकि वे सोवियत संघ के पतन को रोकने में नाकाम रहे थे।
कम्युनिस्ट शासन में सुधार का बीड़ा उठाया
मिखाइल गोर्बाचेव सोवियत संघ के एक बेहद प्रभावशाली नेता थे जिन्होंने कम्युनिस्ट शासन में सुधार का बीड़ा उठाया था। गोर्बाचेव सोवियत सरकार को लोकतांत्रिक सिद्धातों के आधार पर चलाना चाहते थे जिसमें आम जनता को कुछ आजादी हासिल हो। यह सच है कि 1989 में जब सोवियत संघ के पूर्वी यूरोप वाले हिस्से में लोकतंत्र समर्थक आंदोलन की बयार चली तब गोर्बाचेव ने उसे रोकने के लिए काफी बल प्रयोग किया था।
सनोस्त और पेरेस्रोइका के लिए भी जाना जाता है
गोर्बाचेव ने ग्लासनोस्त यानी अभिव्यक्ति की आजादी की नीति का भी समर्थन किया जिस पर पूर्व के शासन में कड़ा पहरा था। इसके साथ-साथ उन्हें पेरेस्रोइका के लिए भी जाना जाता है जो एक आर्थिक कार्यक्रम था। पेरेस्रोइका का मतलब था आर्थिक पुनर्गठन। उस वक्त सोवियत संघ को इसकी बहुत दरकार थी क्योंकि तब उसे मंदी और जरूरी वस्तुओं की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा था।
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था
उस दौरान गोर्बाचेव ने मीडिया और कला जगत को भी सांस्कृतिक आजादी दी। उन्होंने सरकार पर कम्यूनिस्ट पार्टी की पकड़ ढीली करने की दिशा में कई क्रांतिकारी सुधार किए। उसी दौरान हजारों राजनीतिक कैदी और कम्यूनिस्ट शासन के आलोचकों को भी जेल से रिहा किया गया। गोर्बाचेव को अमेरिका के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण समझौते को लागू करने का श्रेय दिया जाता है। इसी के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था।
USSR के पतन के बाद कई आरोप भी लगे
सोवियत संघ के विघटन को लेकर उन पर आरोप भी लगते रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि 1985 में सत्ता में आए गोर्बाचेव ने अगर राजनीतिक प्रणाली पर लगाम रखते हुए सरकार के नियंत्रण वाली अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाने के प्रयास और दृढ़ता से किए होते तो सोवियत रूस का विघटन रोका जा सकता था।
सोवियत संघ टूटने के बाद गोर्बाचेव ने रूस में फिर चुनाव भी लड़ा, लेकिन उन्हें जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था। राष्ट्रपति पद के चुनाव में वह 7वें पायदान पर रहे। बाद के दिनों में वह व्लादिमीर पुतिन के जबरदस्त आलोचक बन गए।