नई दिल्ली: हर साल देश में 02 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती (Gandhi Jayanti) मनाई जाती हैं। बापू के जन्मदिवस को पूरा राष्ट्र राष्ट्रीय पर्व के तौर पर मनाता हैं और उनके सत्य व अहिंसा के विचारों को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हैं। इस दिन पूरे देश में राष्ट्रीय अवकाश रहता हैं। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की तरह इस दिन राष्ट्रीय पर्व का दर्जा दिया गया हैं। गांधी जी के विचारों के सम्मान में संयुक्त राष्ट्र ने इस दिन को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित कर रखा हैं। गांधी ने सत्य और अंहिसा के मार्ग पर चलकर अंग्रेजों को कई बार घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। यह बात सही हैं कि गांधी जी भारत की आजादी की लड़ाई में साल 1915 से सक्रिय हुए। और आजादी की जंग उसके कई दशकों पहले से चल रही थी। लेकिन गांधी जी की एंट्री ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में जबरदस्त जान फूंकी।
02 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी की अहिंसक नीतियों, नैतिक आधारों, अद्भुत नेतृत्व क्षमता ने और अधिक लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा। उन्होंने सभी धर्मों को एकसमान मानने, सभी भाषाओं का सम्मान करने, पुरुषों और महिलाओं को बराबर का दर्जा देने और दलितों-गैर दलितों के बीच की युगों से चली आ रही खाई को पाटने पर जोर दिया।
गांधी जी के जीवन से जुड़ी बातें
कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को महात्मा की उपाधि दी थी।
स्कूल में गांधी जी अंग्रेजी में अच्छे विद्यार्थी थे, जबकि गणित में औसत व भूगोल में कमजोर छात्र थे। उनकी हैंडराइटिंग बहुत सुंदर थी।
उन्हें अपनी फोटो खिचंवाना बिल्कुल पसंद नहीं था।
उन्हें 05 बार नोबल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। साल 1948 में पुरस्कार मिलने से पहले ही उनकी हत्या हो गई।
उनकी शवयात्रा में करीब दस लाख लोग साथ चल रहे थे और 15 लाख से ज्यादा लोग रास्ते में खड़े हुए थे।
राम के नाम से उन्हें इतना प्रेम था की अपने मरने के आखिरी क्षण में भी उनका आखिरी शब्द राम ही था।
साल 1930 में उन्हें अमेरिका की टाइम मैगजीन ने Man Of the Year से उपाधि से
नवाजा था।
क्या आपको इस बात की जानकारी हैं कि जब 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली थी तो महात्मा गांधी इस जश्न में नहीं थे। तब वे दिल्ली से हजारों किलोमीटर दूर बंगाल के नोआखली में थे, जहां वे हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच हो रही सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अनशन कर रहे थे।
गांधीजी ने 15 अगस्त 1947 का दिन 24 घंटे का उपवास करके मनाया था। उस वक्त देश को आजादी तो मिली थी लेकिन इसके साथ ही मुल्क का बंटवारा भी हो गया था। पिछले कुछ महीनों से देश में लगातार हिंदू और मुसलमानों के बीच दंगे हो रहे थे। इस अशांत माहौल से गांधीजी काफी दुखी थे।
गांधी अपने जीवन में 12 देशों के नागरिक अधिकार आंदोलनों के साथ जुड़े रहे।
गांधी जी फुटबॉल के बड़े फैन थे। जब वह साउथ अफ्रीका में रहा करते थे, तब उन्होंने प्रीटोरिया और जोहान्सबर्ग में दो फुटबाल क्लबों की स्थापना की।