नई दिल्ली: इस बार का आम बजट चुनावी मौसम में आ रहा हैं। एक फरवरी को बजट (Budget) पेश होने के 9 दिन (days) बाद ही UP समेत 5 राज्यों में चुनाव हैं। माना जा रहा हैं इन राज्यों का बजट में खास ध्यान रखा जाएगा। कुछ लोकलुभावन घोषणाएं भी हो सकती हैं। ऐसा पहले हो भी चुका हैं। सवाल ये हैं कि चुनाव में इसका फायदा कितना मिलता हैं।
पिछले 15 साल के दौरान 14 राज्यों में हुए 42 विधानसभा चुनावों का एनालिसिस किया। ये राज्य प. बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल, पुडुचेरी, UP, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा, ओडिशा, सिक्किम, आंध्रप्रदेश और अरुणाचल प्रदेश हैं।
बजट के नफे-नुकसान का गणित:
इन 14 राज्यों को चुनने की वजह यही हैं कि यहां बजट पेश होने के कुछ आगे-पीछे ही चुनाव होते हैं। नतीजों के मुताबिक, आम बजट के ठीक बाद हुए इन 42 चुनावों में से 18 में उस पार्टी की सरकार नहीं बनी जो पहले से सत्ता में थी। 13 में सत्तारूढ़ पार्टी को फायदा हुआ और 11 बार बजट का चुनाव नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ा। चौंकाने वाली बात ये भी हैं कि जिन 18 चुनावों में नुकसान हुआ, उनमें से 15 बार कांग्रेस और 3 बार भाजपा शिकार बनी।
वहीं, जिन 13 चुनावों में फायदा हुआ, उनमें 9 बार भाजपा और 4 बार कांग्रेस की हिस्सेदारी रही। इसके अलावा 11 चुनावों पर ‘चुनावी बजट’ का कोई असर नहीं पड़ा। इनमें 7 बार भाजपा और 4 बार कांग्रेस सत्तारूढ़ थी।
फायदा उठाने में BJP कांग्रेस से आगे:
13 चुनावों में फायदा, इनमें से 9 बार सत्तारूढ़ पार्टी के रूप में भाजपा को और 4 बार कांग्रेस को फायदा मिला।
18 चुनावों में नुकसान, इनमें से चुनाव नतीजों में 15 बार कांग्रेस को और 3 बार भाजपा को नुकसान।
11 में कोई असर नहीं, इनमें 7 बार भाजपा सत्तारूढ़ पार्टी रही और 4 बार कांग्रेस, लेकिन असर नहीं।
ऐसे समझें बजट और सत्तारूढ़ पार्टी को फायदे-नुकसान का गणित:
आम बजट के ठीक बाद हुए विधानसभा के चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी को पिछले चुनाव के मुकाबले में सीटें बढ़ने या घटने के आधार पर फायदे और नुकसान की गणना की गई हैं।
2006: तमिलनाडु में आम बजट के बाद विधानसभा चुनाव हुए। केंद्र में कांग्रेस थी। 34 सीटें मिलीं, 2001 में 7 थीं, यानी फायदा।
2017: पंजाब में 11 फरवरी से चुनाव थे, 1 फरवरी को बजट आया। केंद्र में सरकार चला रही भाजपा ने 3 सीटें जीतीं। 2012 में 12 थीं, यानी नुकसान।
2021: असम में अप्रैल में चुनाव थे, फरवरी में आम बजट पेश किया गया था। केंद्र में भाजपा नीत NDA सरकार थी। 60 सीटें जीतीं, 2017 में भी 60, यानी कोई असर नहीं।
एनालिसिस में बंगाल समेत 5 राज्यों के 4 चुनाव शामिल:
प. बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल, पुडुचेरी में 2006, 2011, 2016 और 2021 में हुए चुनाव।
UP, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में 2007 और 2017 के चुनाव।
ओडिशा, सिक्किम, आंध्रप्रदेश, अरुणाचल में 2009, 2014 और 2019 के चुनाव।
बजट को चुनावी साबित करने वाली घोषणाएं:
2017: UP, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा चुनाव से पहले के कुल 21.46 लाख करोड़ रु. के कुल बजट में 10 लाख करोड़ रु. किसानों के कर्ज के लिए रखे। गांवों के लिए 1.87 लाख करोड़ अलग से आवंटित। 3.96 लाख करोड़ बुनियादी ढांचा विकास।
तीन बातें जो जानना जरूरी हैं…
- क्या और कैसा होता हैं चुनावी बजट?
चुनाव से पहले आने वाले बजट में लोकलुभावन वादे ज्यादा होते हैं और कड़े सुधार के उपाय कम। 1 फरवरी, 2022 को आने वाले बजट में भी वोटरों को लुभाने वाली घोषणाएं होने की पूरी संभावना हैं।
क्या घोषणाएं आचार संहिता का उल्लंघन हैं?
2017 में विपक्ष ने यह मुद्दा उठाया था। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। कोर्ट ने बजट टालने की याचिका खारिज कर कहा था कि बजट पेश करने से राज्यों के चुनावों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।
चुनावी राज्यों से जुड़ी घोषणाओं पर रोक है?
चुनाव आयोग ने 2017 में निर्देश दिए कि वोटरों को प्रभावित करने वाली घोषणाएं न की जाएं। वित्त मंत्री चुनावी राज्यों से जुड़ी केंद्र सरकार की उपलब्धियों का किसी तरह से भी कोई जिक्र न करें।