आज World Bicycle डे हैं। आज हम Bicycle से जुड़ी राजनीति जानेंगे। याद रहे, UP में साइकिल सिर्फ एक वाहन नहीं हैं, बल्कि सियासत की सीढ़ी भी हैं। यहां कई ऐसे नेता हुए जिन्होंने साइकिल का हैंडल थामा और सत्ता के शीर्ष पर पहुंच गए। साइकिल डे के दिन आज हम उन्हीं में से 3 लोगों की कहानियां बताएंगे।
सबसे पहले हम मुलायम सिंह यादव से जुड़ा किस्सा बताएंगे, फिर कांशीराम और अटल बिहारी का। साथ ही एक ऐसे प्रधानमंत्री की कहानी जो संसद साइकिल से जाते हैं। आइए शुरू करते हैं।
सपा की ‘साइकिल’ बनने की कहानी:
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल का कहना हैं कि 1993 के विधानसभा चुनाव के लिए जब सिंबल चुनने की बात आई तो नेताजी और बाकी वरिष्ठ नेताओं ने विकल्पों में से साइकिल को चुना। उस समय साइकिल किसानों, गरीबों, मजदूरों और मिडिल क्लास की सवारी थी। साइकिल चलाना आसान और सस्ता था। वहीं हेल्थ के लिए भी साइकिल चलाना फायदेमंद हैं। इसी वजह से साइकिल को ही सिंबल के लिए चुना गया।
3 बार विधायक बनने के बाद भी साइकिल से चलते थे मुलायम:
सपा के संस्थापक सदस्यों में से एक और उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सत्यनारायण सचान ने कहा कि तीन बार विधायक बनने के बाद भी मुलायम सिंह यादव ने 1977 तक साइकिल की सवारी की। सचान के बताया कि बाद में पार्टी के किसी अन्य नेता ने पैसा इकठ्ठा किया और इनके लिए एक कार खरीदी। उनका कहना हैं कि साइकिल का चिन्ह गरीबों, दलितों, किसानों और मजदूर वर्गों को दर्शाता हैं। जिस तरह से समाज और समाजवादी चलते रहते हैं, उसके दो पहिये खड़े होते हैं, जबकि हैंडल बैलेंस करने के लिए होता हैं।
20 किलोमीटर साइकिल चलाकर कॉलेज जाते थे मुलायम:
मुलायम सिंह यादव 1960 में उत्तर प्रदेश के इटावा में जब कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें रोजाना करीब 20 किलोमीटर साइकिल चलाकर कॉलेज जाना पड़ता था। मुलायम के घर की आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि वह एक साइकिल खरीद पाते। पैसों की कमी के चलते वह मन मसोस कर रह जाते थे और कॉलेज जाने के लिए संघर्ष करते थे।
Bicycle से ही प्रचार-प्रसार करते थे कांशीराम:
बसपा के संस्थापक कांशीराम अपनी साइकिल से ही पूरे हिन्दी प्रदेश में प्रचार प्रसार का काम किया करते थे। कभी उत्तराखंड तो कभी मध्य प्रदेश साइकिल से ही चले जाते थे। दलितों को एकजुट करने के लिए उन्होंने कई साइकिल रैलियां की थी। कांशीराम के दोस्त मनोहर आटे बताते हैं, “उन दिनों महाराष्ट्र सरकार मुख्यालय के सामने अंबेडकर की मूर्ति हुआ करती थी। अक्सर कांशीराम वहां बैठकर बहुजन समाज के बारे में सोचते और गहन विचार किया करते थे। वहीं सामने एक ईरानी होटल था जहां वो अपनी साइकिल खड़ी करते थे।”
साइकिल सिर्फ वाहन नहीं, मिशन को बढ़ाने का साधन हैं:
उनके करीबी मित्रों ने जब उनसे रोने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि ये साइकिल मेरे लिए बस एक वाहन नहीं हैं। ये मेरे मिशन को आगे लेकर जाने वाला सबसे बड़ा साधन हैं। इसे लापता पाकर मुझे ऐसा लगा मानो मेरी जिंदगी खत्म होने लगी हैं। कांशीराम के दिल में बहुजन समाज के प्रति ऐसा प्रेम देखकर उनके मित्र बहुत खुश हुए।
इसे भी पढ़े: World No Tobacco Day 2022
साइकिल से मथुरा में चुनाव प्रचार करने गए थे अटल बिहारी वाजपेयी:
मथुरा के बिसावर के रहने वाले 90 साल के पूर्व विधायक चौ. बृजेंद्र सिंह बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी 1956 में जब यहां चुनाव प्रचार करने आए थे। तब वे मथुरा में सभा करने के बाद साइकिल से ही प्रचार करने सादाबाद के पटलोनी गांव पहुंचे थे।