मुंबई: हिंदी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री आशा पारेख (Asha Parekh) को दादा साहब फाल्के अवॉर्ड, 2020 से सम्मानित किया जाएगा। सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने इस बात की जानकारी दी। आशा पारेख को यह अवॉर्ड नई दिल्ली में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में प्रदान किया जाएगा।
निर्णय की घोषणा करते हुए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि मुझे यह घोषणा करते हुए सम्मानित महसूस हो रहा है कि दादा साहेब फाल्के चयन जूरी ने आशा पारेख को भारतीय सिनेमा में उनके अनुकरणीय जीवन भर के योगदान के लिए मान्यता और पुरस्कार देने का निर्णय लिया है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार 30 सितंबर को आयोजित किए जाएंगे और इसकी अध्यक्षता भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू करेंगी।
जानें आशा पारेख के बारे में
आशा पारेख एक प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री, निर्देशक और निर्माता और एक कुशल भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना हैं। एक बाल कलाकार के रूप में अपना करियर शुरू करते हुए, उन्होंने ‘दिल देके देखो’ में मुख्य नायिका के रूप में अपनी शुरुआत की और 95 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने ‘कटी पतंग’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘लव इन टोक्यो’, ‘आया सावन झूम के’, ‘आन मिलो सजना’, ‘मेरा गांव मेरा देश’ जैसी मशहूर फिल्मों में अभिनय किया है। आशा पारेख 1950-1973 तक हिंदी फिल्मों की शीर्ष सितारों में से एक थीं।
आशा पारेख का जन्म 2 अक्टूबर 1942 को भारत में एक मध्यमवर्गीय गुजराती परिवार में हिंदू पिता, प्रणलाल पारेख और मां मुस्लिम सुधा पारेख के घर हुआ था। उनकी मां ने उन्हें कम उम्र में शास्त्रीय नृत्य कक्षाओं में भेजना शुरू कर किया, और आशा ने नृत्य में उस मुकाम तक उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, जहां उन्होंने स्टेज शो में प्रदर्शन किया। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक बिमल रॉय ने एक मंच समारोह में उनका नृत्य देखा और दस साल की छोटी उम्र में उन्हें फिल्म मां (1957) में कास्ट किया। फिर उन्होंने आशा पारेख को बाप-बेटी (1954) में कास्ट किया। हालांकि इस फिल्म के बाद उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा फिर से शुरू करने के फैसला किया।
सोलह साल की उम्र में, उन्होंने फिर से अभिनय करने और एक नायिका के रूप में अपनी शुरुआत करने का फैसला किया। फिल्म निर्माता ससाधर मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने उन्हें दिल देके देखो (1959) में नायिका के रूप में कास्ट किया, जिसने उन्हें एक बहुत बड़ा स्टार बना दिया। शम्मी कपूर आशा पारेख के पसंदीदा नायक और दोस्त रहे, और उन्होंने तीन फिल्मों में एक साथ काम किया। सबसे प्रसिद्ध मर्डर मिस्ट्री तीसरी मंजिल (1966) है।
सेंसर बोर्ड की पहली महिला अध्यक्ष
आशा पारेख को 1992 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया। उन्होंने 1998-2001 तक केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के प्रमुख के रूप में भी काम किया है। वह भारत के केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सेंसर बोर्ड) की पहली महिला अध्यक्ष भी थीं।
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पांच सदस्यों की जूरी ने लिया निर्णय
बता दें कि आशा पारेख को पुरस्कार प्रदान करने का निर्णय पांच सदस्यों की जूरी द्वारा लिया गया था। 52वें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के चयन के लिए जूरी में फिल्म उद्योग के पांच सदस्य शामिल थे, जिनमें आशा भोसले, हेमा मालिनी, पूनम ढिल्लों, टी. एस. नागभरण और उदित नारायण रहे।
क्या है दादा साहब फाल्के पुरस्कार?
दादा साहब फाल्के पुरस्कार सिनेमा के क्षेत्र में भारत का सर्वोच्च पुरस्कार है। यह दादासाहेब फाल्के की याद में दिया जाता है, जिन्हें ‘भारतीय सिनेमा का जनक’ माना जाता है और जिन्होंने पहली हिंदी फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाई थी। दादा साहेब फाल्के पुरस्कार की शुरुआत वर्ष 1969 में भारतीय सिनेमा के पितामह दादा सहेब फाल्के की सौवीं जयंती के अवसर पर की गई थी। 2019 में, यह रजनीकांत को सम्मानित किया गया था। भारत सरकार की ओर से दिया जाने वाला यह पुरस्कार, किसी व्यक्ति विशेष को भारतीय सीनेमा में उसके आजीवन योगदान के लिए दिया जाता है।