हकीकत के आईने में अन्तर्राष्ट्रीय बालिका दिवस

International Girl Child Day in the mirror of reality

वैसे तो अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस है लेकिन दुनिया भर में महिलाएं और लड़कियों के प्रति जारी भेदभाव, लैंगिक हिंसा और पिछड़ेपन के खिलाफ लोगों को जागरूक करना और किशोरियों में आत्मविश्वास पैदा करना अपने अधिकारों को पहचानना और रक्षा करना अन्तराष्ट्रीए बालिका दिवस का मुख्य उदेश्य है। स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियों को आए दिन परेशानियों का सामना करना पढ़ता है,घर से लेकर कॉलेज तक अलग-अलग तरह से दिक्कतों को झेलना पड़ता है, मानव अधिकार संगठन का कहना है कि स्कूलों में भी लड़कियां लैंगिक हिंसा का शिकार होती है, टीचर्स से लेकर बस कंडक्टर और चपरासी तक इस गुनाह में शामिल होते है, यहां तक कि स्कूल परीक्षा में अच्छे नंबर से पास होने का लालच या फिर फेल कर देने की धमकी दी जाती है, स्कूल बस की फीस कम करने या माफ़ करने की बात होती है। घर से स्कूल जाने-आने के दौरान सड़क किनारे खड़े शोहदे भद्दे कमेंट पास करते है उन्हें परेशान करते है। घर से लेकर सड़क तक लड़कियां महफूज़ और सुरक्षित नहीं है। यही नहीं वर्क पैलेस में भी लड़कियों को हरासमेंट का सामना करना पड़ता है।

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ हर साल 20 साल से कम उम्र की कम से कम 120 मिलियन लड़कियों को लगभग दस में से एक को यौन संबंध बनाने या अन्य यौन कार्य करने के लिए मजबूर किया गया है, हालांकि वास्तविक आंकड़ा बहुत अधिक होने की संभावना है। जबरन सेक्स की रिपोर्ट करने वाली लगभग 90 फीसदी लड़कियों का कहना है कि उनका पहला अपराधी वह था जिसे वे जानती थीं, उनका ब्वॉय फ्रेंड या फिर परिवार का कोई सदस्य, इसमें पारिवारिक दोस्त भी शामिल होते है। लेकिन यौन हिंसा की शिकार कई लड़कियां जिनमें लाखों लड़के भी शामिल हैं, कभी किसी को ये बात नहीं बताती। 20 साल से कम उम्र की लगभग दस में से एक लड़की को यौन संबंध बनाने या अन्य यौन कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता है। हालांकि यौन हिंसा हर जगह होती है, लेकिन आपातकालीन स्थितियों में जोखिम बढ़ जाता है। सशस्त्र संघर्ष, प्राकृतिक आपदाओं और अन्य मानवीय आपात स्थितियों के दौरान, महिलाएं और बच्चे विशेष रूप से यौन हिंसा की चपेट में आते हैं- जिसमें संघर्ष से संबंधित यौन हिंसा, जैसे नाइजेरिया में बोको हराम के आतंकवादी स्कूलों पर हमला कर छात्राओं को अगवा कर लेते है और फिर जबरन उनसे शादी करते है, आईएसआईएस के जरिए इराक और सीरिया में किये गए हैवानियत भरे ज़ुल्म खासकर यज़ीदी लड़कियों-महिलाओ का अपहरण कर उन्हें सेक्सुअल गुलाम बनाना, मन में सिरहन पैदा केर देता है, सांप्रादायिक दंगो में भी दूसरे समुदाय से बदला लेने का सबसे बड़ा हथियार होता है उनकी बेटियों और महिलाओं की इज़्ज़त को तार-तार कर देना।

यौन हिंसा से गंभीर शारीरिक, मानसिक और सामाजिक नुकसान पहुंचता है। पीड़ितों को एचआईवी और अन्य यौन संचारित संक्रमणों, दर्द, बीमारी, अवांछित गर्भावस्था, सामाजिक अलगाव और मनोवैज्ञानिक आघात के बढ़ते जोखिम का अनुभव होता है। कुछ पीड़ित आघात से निपटने के लिए मादक द्रव्यों के सेवन का सहारा लेती हैं और जैसे-जैसे बाल पीड़ित वयस्क होते हैं, यौन हिंसा उनकी और दूसरों की देखभाल करने की उनकी क्षमता को कम कर सकती है। किशोरियों के साथ ऑनलाइन सेक्सुअल क्राइम भी बढ़ा है। इन सब से इतर घर में भी लड़कियों को माता-पिता के हाथों भेद भाव का सामना करना पड़ता है, कहा जाता है बेटी जानती हो कि तुम्हारा भाई झगड़ा करता है, वह शोर मचाएगा, तुम तो समझदार हो उसे पहले खाना दे देते है, देखो ये भाई का खिलौना है इसे मत छूना, भाई अगर बहन की पिटाई भी कर दे तो भी डांट बहन यानी की बेटी को ही सुनने को मिलती है। भारत में लड़कियों की पढ़ाई पर एक नज़र डालते हैं, भारत में लड़कियों में पढ़ाई को लेकर हालात में पहले से सुधार आया है लेकिन आंकड़े बताते है कि अभी लम्बी मंज़िल तय करना बाकी है, साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में कुल साक्षरता दर 74 फीसदी व्यक्ति है, महिलाओं में साक्षरता दर 65.46 प्रतिशत है। साल 2001 में देश में महिला साक्षरता 53.7 प्रतिशत थी। अखिल भारतीय स्तर पर यह देखा जा सकता है कि साक्षरता में जेंडर गैप रहा है। हालांकि ये घट रहा है और महिला साक्षरता दर हर दशक में बढ़ रही है। बहरहाल, दो लिंगों के बीच अंतर मौजूद है।

आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं साक्षरता दर और शैक्षिक उपलब्धियों के मामले में शुरू से ही पिछड़ा हुआ है। भारत में महिला भ्रूण हत्या की दर भी चिंताजनक है, भ्रूणहत्या के कारण लड़कों और लड़कियों के बीच का अंतर बढ़ा है। महिला साक्षरता के बीच जो रुकावट है उसके कई कारण है, जैसे साक्षर दर, लिंग आधारित असमानता। सामाजिक भेदभाव और आर्थिक शोषण, घरेलू कामों में बालिकाओं का चलन, स्कूलों में लड़कियों का कम दाख़िला और कम उम्र में शादी, कोरोना काल के दौरान लड़कियों की शादी में 50 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई।

किशोरियों में सुरक्षा का एहसास और समानता का अधिकार देने की पहल सबसे पहले पुरुष प्रधान समाज को अपने चेतना में पैदा करना होगा, लड़कियों के प्रति अपने दिमागी सोच को बदलना होगा, पश्चिम समाज भी महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह रखता है, समाज तभी तरक़्क़ी करेगा जब बालिकाओं, किशोरियों महिलाओं में सही आज़ादी की भावना पैदा हो, वे भेद भाव, हिंसा और ‘मी टू’ की शिकार ना हो।

Syed Ruman Shamim Hashmi
(Editor in chief)
NewzCities

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