जहांगीरपुरी Jahangirpuri का सी और डी ब्लॉक। अब यहां चप्पे-चप्पे पर पुलिस और सुरक्षाबलों का पहरा हैं। गली, कोने, नुक्कड़, चौराहे जहां नजर जाए, वर्दी में खड़े जवान नजर आएंगे। जहां-जहां पर bulldozers ने अतिक्रमण हटाने के लिए तोड़फोड़ की अब वहां किसी को भी नहीं जाने दिया जा रहा, मीडिया वालों को भी नहीं।
कुशल सिनेमा से ही पहले आती हैं जामा मस्जिद, 15 कदम आगे चलते ही मिलेगा काली माता का मंदिर। यही वो इलाका हैं जहां 16 अप्रैल को हनुमान जयंती के दिन हिंदू-मुस्लिम उन्माद वाली हिंसा भड़की। ये इलाका मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और हिंदू यहां पर अल्पसंख्यक हैं। हम यहां रहने वाले कई सारे हिंदुओं के घर पहुंचे और वक्त बिताया। बातचीत में जाना कि मुस्लिम बहुल इलाके में अल्पसंख्यक होने का उनका अनुभव क्या हैं।
‘दिवाली पर मिठाई जाती हैं और ईद पर आती हैं सेवईं’:
धर्मपाल, उम्र 60 के पार। बाना- कुर्ता-पायजामा, गले में गमछा, सफेद नेहरू टोपी और मूछों पर ताव। धर्मपाल पिछले 4 दशकों से जहांगीरपुरी में छोले की दुकान लगा रहे हैं। इनके पास घर के नाम पर हैं सिर्फ एक कमरा, वो भी छोटा सा। आस-पड़ोस में मुसलमान ही मुसलमान रहते हैं। धर्मपाल बताते हैं कि वो इस बस्ती में बरसों से रहते आए हैं और आज तक धर्म के आधार कोई लड़ाई नहीं हुई।
हमने धर्मपाल से पूछा कि जब हिंसा की घटना नहीं हुई थी तब इस बस्ती में हिंदू और मुसलमानों के आपसी रिश्ते कैसे थे? जवाब मिला- ‘हमारे यहां भाईचारा इतना हैं कि सभी त्योहार साथ मिलकर मनाते हैं। ईद में हमारे घर मुसलमान सेवईं देकर जाते हैं, दीवाली में हमारे घर से मिठाइयां मुसलमानों के घर भेजते हैं। होली सब लोग मिलकर खेलते हैं।’
धर्मपाल ने हमें एक दिलचस्प किस्सा सुनाया। एक बार उनके घर का दरवाजा टूट गया और अब आफत आन पड़ी कि बिना दरवाजे के रात कैसे कटेगी? वो बताते हैं कि ‘आस-पास के रहने वाले मुसलमानों ढांढस बांधा कि हम सब हैं, मैं आंगन में चारपाई बिछाकर सो गया और रात आराम से गुजर गई।’
‘अगर धर्म के नाम पर लड़ाई करेंगे तो कमाएंगे क्या और खाएंगे क्या?’
शांति, उम्र-58। बाना- पीली साड़ी, कान में बालियां, गले में मोतियों की माला, माथे पर बिंदी। शांति का घर भी एक कमरे का ही हैं। शांति बताती हैं कि ‘टीवी पर दिखाया जा रहा हैं कि जहांगीरपुरी में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत का माहौल हैं, लेकिन यहां के हालात बिल्कुल ही अलग हैं, यहां हर आस पड़ोस में हम सब मिलजुल कर रहते हैं। यहां जो भी रह रहा हैं गरीब हैं, हिंदू भी गरीब हैं और मुसलमान ही गरीब हैं।
ये गरीबी ही हमें एकजुट करती हैं। कोई रेहड़ी लगता हैं, कोई दिहाड़ी मजदूरी करता हैं, तो कोई रिक्शा-ठेला चलाता हैं। अगर हम धर्म के नाम पर आपस में लड़ेंगे तो कमाएंगे क्या और रहेंगे क्या। जो लड़ाई हुई वो यहां के लोगों की वजह से नहीं बल्कि दूसरे मोहल्लों के लोगों की वजह से हुई हैं।’
‘रिजाबुल मेरे 35 साल से दोस्त हैं, ये मेरे लिए सगे भाई से भी बढ़कर हैं’:
पवन कुमार सोनी, उम्र- करीब 60 साल। चेहरे पर नारंगी टीका। पवन की सी ब्लॉक की गली में मस्जिद के पास 35 साल से नाश्ते की दुकान हैं। दुकान के ज्यादातर ग्राहक मुसलमान ही हैं। पवन बताते हैं कि यहां पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच के नफरत जैसी कोई बात ही नहीं हैं। हम पवन से बात कर ही रहे थे कि उनकी दुकान पर आ गए रिजाबुल।
पवन बताते हैं कि जब वो जहांगीरपुरी आए थे तब से रिजाबुल उनके दोस्त हैं, दोनों की दोस्ती सगे भाइयों से भी बढ़कर हैं। ‘मेरा अगर कोई छोटा मोटा झगड़ा हो जाता हैं तो यहां के मुसलमान ही मेरा साथ देने आते हैं। अगर हमारे बीच रिश्ते अच्छे नहीं होते तो मैं अपनी दुकान यहां से कहीं और शिफ्ट कर लेता, लेकिन मुझे यहीं अच्छा लगता हैं। अगर कोई अनहोनी होती तो भरोसा हैं कि लोग मदद करने आगे आएंगे ही।’
हिंसा की शुरुआत वाली जगह हैं मुस्लिम बहुल:
जहांगीरपुरी में जिस जामा मस्जिद के सामने हिंसा की शुरुआत हुई वो मस्जिद सी ब्लॉक में स्थित हैं और ये इलाका मुस्लिम बहुल हैं। स्थानीय पूर्व पार्षद राम किशन बंसीवाल ने बताया कि जहांगीरपुरी सी ब्लॉक में धार्मिक आधार पर जनसंख्या का अनुपात 60 और 40 का हैं। मतलब 60 प्रतिशत मुस्लिम हैं और 40 प्रतिशत हिंदू हैं, वहीं डी ब्लॉक में ठीक इसका उल्टा हैं, वहां हिंदू बहुसंख्य हैं। अगर सी और डी दोनों ब्लॉक मिला लिए जाएं तो हिंदू और मुस्लिम समुदाय की तादाद करीब-करीब बराबर हैं।