पटना: लोकआस्था के महापर्व ‘Chhath‘ व्रत नहाय-खाय के साथ शुरू हो चुका है। चार दिवसीय इस पर्व की शुरुआत 28 अक्टूबर को नहाय-खाय के साथ हुई, जो 31 अक्टूबर तक चलेगा। इसी क्रम में आज शनिवार के दिन ‘खरना’ (Kharna) पूजन है। खरना को लेकर छठ व्रती महिलाएं सारी तैयारी कर चुकी है जिसमें शुद्धता का विशेष ख्याल रखा जाता है। रविवार को संध्या कालीन अर्घ्य और सोमवार उदयीमान भगवान भास्कर को अर्घ देने के साथ छठ व्रत का समापन हो जाएगा। आइये अब जानते हैं कि छठ में खरना का क्या होता है और इसका क्या महत्व है ?
खरना में क्या होता है ?
शनिवार को लोग छठ का दूसरा दिन खरना के रूप में मना रहे हैं। इस अवसर पर छठी मैया को खुश करने के लिए हर व्रती प्रसाद में चार चीजें बनाती हैं। इस दिन व्रती सुबह से निर्जला व्रत रखकर शाम को मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर बनाती है। खीर के साथ रोटी भी बनती है, रोटी और खीर के साथ मौसमी फल केला जरूर शामिल किया जाता है और मिठाई के साथ एक केले के पत्ते पर रखकर छठ माता को चढ़ाया जाता है। इसके बाद व्रती खुद भी इस प्रसाद को ग्रहण करके परिवार के बाकी लोगों को भी प्रसाद बांटती है।
यह प्रसाद चूल्हें पर आम की लकड़ियों को जलाकर ही बनाया जाता है। वहीं रविवार को व्रती संध्या अर्घ्य के लिए नहर पर जाती हैं। इस वर्ष डूबते सूर्य को दिया जाने वाला संध्या अर्घ्य 30 अक्टूबर दिन रविवार को है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होता है। इसी दिन छठी मैया की विशेष पूजा भी होती है। इसी प्रकार ऊषा अर्घ्य और पारण- इस वर्ष छठ पर्व में ऊषा अर्घ्य और पारण 31 अक्टूबर दिन गुरुवार को है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को होता है।
खरना का है खास महत्व ?
छठ में खरना का विशेष महत्व है। खरना का अर्थ है शुद्धिकरण। शुद्धिकरण केवल तन नहीं, बल्कि मन का भी होता है। इसलिए खरना के दिन केवल रात में भोजन करके छठ के लिए तन-मन को व्रती शुद्ध करते हैं। साथ ही जो प्रसाद बनता है, उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है। खीर का प्रसाद महिलाएं अपने हाथों से ही पकाती हैं। इस दिन महिलाएं सिर्फ एक ही समय भोजन करती हैं। आम तौर पर इस दिन दिन सूर्यास्त के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करती हैं। खरना के बाद व्रती 36 घंटे का व्रत रखकर सप्तमी को सुबह अर्घ्य देती हैं।
पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत
छठ महापर्व की लोकप्रियता आज देश-विदेश तक देखने को मिलती है। छठ पूजा का व्रत कठिन व्रतों में एक होता है। इसमें पूरे चार दिनों तक व्रत के नियमों का पालन करना पड़ता है और व्रती पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। छठ पूजा में नहाय खाय, खरना, अस्ताचलगामी अर्घ्य और उषा अर्घ्य का विशेष महत्व होता है। छठवर्त के पहला दिन- नहाय खाय 28 अक्टूबर शुक्रवार, दूसरा दिन- खरना 29 अक्टूबर शनिवार, तीसरा दिन- अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य 30 अक्टूबर रविवार तथा आखिरी व चौथे दिन- उदीयमान सूर्य को अर्घ्य 31 अक्टूबर सोमवार को संपन्न होगा।
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यहां है पूरी प्रक्रिया
कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को स्नानादि से निवृत होने के बाद ही भोजन ग्रहण किया जाता है। इसे नहाय खाय भी कहा जाता है। इस दिन कद्दू भात का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन नदी या तालाब में पूजा कर भगवान सूर्य की उपासना की जाती है। संध्या में खरना में खीर और बिना नमक की पूरी इत्यादि को प्रसाद के रूप में ग्रहण कर खरना के बाद निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन भी व्रती उपवास रहती है और शाम में किसी नदी या तालाब में जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह अर्घ्य एक बांस के सूप में फल, ठेकुआ प्रसाद, ईख, नारियल इत्यादि को रखकर किया जाता है। कार्तिक शुक्ल सप्तमी सबेरे को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन छठ व्रत संपन्न हो जाता है और व्रती व्रत का पारण करती हैं।
श्रद्धा और आस्था से जुड़ा है छठ पर्व
छठ का यह पर्व श्रद्धा और आस्था से जुड़ा होता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है। छठ व्रत, सुहाग, संतान, सुख, सौभाग्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए किया जाता है। मान्यता है कि आप इस व्रत में जितनी श्रद्धा से नियमों और शुद्धता का पालन करेंगे छठी मईया आपसे उतनी ही प्रसन्न होंगी।