वर्ल्ड नो Tobacco Day 2022

नई दिल्ली: आज World No Tobacco Day हैं। तंबाकू और उसका सेवन करने वाले लोग बदनाम हैं, लेकिन इसे बेचने की अनुमति देने वाली सरकारें और विज्ञापनों के जरिए बाजार तक लाने वाले लोग अमीर, इज्जतदार और ताकतवर जीवन जी रहे हैं। तंबाकू को सिगरेट में बदलने की टेक्नोलॉजी से ज्यादा खतरनाक दुनिया में अब तक कुछ नहीं बना। सिगरेट के जरिए तंबाकू का धुंआ गले में नहीं लगता और लोग इसे फेफड़े तक खींचते हैं।

एक सिगरेट में 600 किस्म के जहरीले पदार्थ:

कंपनियों में लाइट, फिल्टर्ड और सुगंधित सिगरेट बनाने की होड़ लग गई हैं। यानी, सिगरेट जितनी लाइट हैं, उतनी ही ज्यादा तेजी से फेफड़ों को तबाह करती हैं। सही मायनों में, सिगरेट भ्रष्टाचार की उपज हैं, जिसमें वैज्ञानिक और विज्ञापन बराबर के दोषी हैं। मशीनीयुग से पहले एक व्यक्ति दिनभर में 200 सिगरेट बना पाता था। आज एक मशीन 1 मिनट में 20 हजार सिगरेट बनाती हैं। इसमें सायनाइड, रेडियोएक्टिव आइसोटोप और अमोनिया जैसे करीब 600 किस्म के जहरीले पदार्थ मिलाए जाते हैं।

सरकारों ने सिगरेट को महामारी में बदला:

सरकारें ऐसे जहर को बनाने-बेचने का लाइसेंस देकर सबसे बड़ी दोषी हैं। सरकारों ने सिगरेट को महामारी में बदल दिया हैं। साथ ही, सिगरेट में रेडियोएक्टिव तत्व भी हैं। हर साल 80 लाख लोग सिगरेट पी कर मर रहे हैं। सिगरेट की वजह से मरने वाले हर शख्स से कंपनियों को लाखों रुपए का मुनाफा हो रहा हैं। तंबाकू की खेती से लेकर सिगरेट बनाने की प्रक्रिया जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दे रही हैं। इसकी खेती में इस्तेमाल हो रहे पेस्टिसाइड से धरती तबाह हो रही हैं। धरती पर जीवन बचाने के लिए इस पर तत्काल प्रतिबंध लगना चाहिए।

हर साल सिगरेट मैन्युफैक्चरिंग पर 60 करोड़ पेड़ कट रहे:

6 लाख करोड़ सिगरेट सालाना फूंकी जा रही हैं। इन्हें एक के ऊपर एक रखा जाए तो ये धरती से सूरज तक जा कर वापस आ जाएंगी। फिर भी इतनी बची होंगी की कई बार मंगल ग्रह जा कर आ जाएं।

प्रति सेकंड 15 किमी जितनी लंबी सिगरेट फूंकी जा रही हैं।

हर साल सिगरेट मैन्युफैक्चरिंग पर 60 करोड़ पेड़ कट रहे। भारत में 1962-2002 के बीच तंबाकू की खेती ने 1700 हेक्टेयर जंगल निगला।

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