प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी पहली बैठक में, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने वर्तमान समय में अहिंसा, सहिष्णुता और विविधता यानी एकता में अनेकता की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। बिडेन की ये टिप्पणी दूसरी बार है जब अमेरिका ने मोदी से सार्वजनिक रूप से इतने दिनों में लोकतंत्र के महत्व के बारे में बात की है। उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात के दौरान कहा था की “यह जरूरी है कि दोनों देश अपने-अपने देशों के भीतर लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संस्थानों की रक्षा करें। ये टिप्पणियां भारत में मुस्लिम विरोधी बयानबाजी में वृद्धि और असंतोष पर अंकुश लगाने पर विदेशों में बढ़ती चिंताओं की पृष्ठभूमि के दौरान आई हैं। लॉस एंजिल्स टाइम्स ने अमेरिकी उपराष्ट्रपति से पीएम मोदी की मुलाक़ात की ख़बर को प्रकाशित करते हुए शीर्षक में बताया कि कमला हैरिस ने ऐतिहासिक बैठक में भारत के प्रधानमंत्री मोदी पर मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर धीरे से दबाव डाला।
जो बिडेन से पहले डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने भारत यात्रा के दौरान मानवाधिकार से जुड़ा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी पहली बैठक में, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने वर्तमान समय में अहिंसा, सहिष्णुता और विविधता यानी एकता में अनेकता की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। बिडेन की ये टिप्पणी दूसरी बार है जब अमेरिका ने मोदी से सार्वजनिक रूप से इतने दिनों में लोकतंत्र के महत्व के बारे में बात की है। उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात के दौरान कहा था कि यह जरूरी है कि दोनों देश अपने-अपने देशों के भीतर लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संस्थानों की रक्षा करें। ये टिप्पणियां भारत में मुस्लिम विरोधी बयानबाजी में वृद्धि और असंतोष पर अंकुश लगाने पर विदेशों में बढ़ती चिंताओं की पृष्ठभूमि के दौरान आई हैं। लॉस एंजिल्स टाइम्स ने अमेरिकी उपराष्ट्रपति से पीएम मोदी की मुलाक़ात की ख़बर को प्रकाशित करते हुए शीर्षक में बताया कि कमला हैरिस ने ऐतिहासिक बैठक में भारत के प्रधानमंत्री मोदी पर मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर धीरे से दबाव डाला। आख़िर अब अमेरिका भारत को क्यों मानवाधिकारों का सम्मान और गांधी के विचारों की याद दिला रहा है, ये बात ऐसी ही हुई जैसे ‘हमी से लफ्ज़ बागी सीखा, हमी को बाग़ी ठहरा रहे हो’, अब बदले-बदले से क्यों अंकल सैम नज़र आते हैं।
दरअसल, अमेरिका भारत की वाणिज्य और कस्टम पॉलिसी को लेकर नाराज़ है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत की आयात नीतियों पर शिकायतों की एक लंबी सूची का खुलासा किया है। साल 2021 में जारी राष्ट्रीय व्यापार अनुमान (एनटीई) रिपोर्ट में ये बताया गया है की सख्त लाइसेंसिंग, आयात कोटा, सर्टिफिकेशन और सीमा शुल्क नियमों के वजहकर अमेरिका को भारत में समान निर्यात करना मुश्किल हो गया है,ये एक अच्छी तरह से सोची समझी ‘गैर-टैरिफ बाधाओं’ की एक ऐसी रुकावट है जो अमेरिकी सामानों को भारत आने से रोकता है।
अमेरिका ने भारत से इन एक्सपोर्ट सख्तिओं को लेकर शिकायत भी की है,लेकिन अभी तक इसका कोई खास नतीजा सामने नहीं आया है.ज़ाहिर है इस बात बिडेन सरकार परेशां है।
दोनों देशो के बीच व्यापार घाटा भी बढ़ा है, साल 2021 की राष्ट्रीय व्यापार अनुमान रिपोर्ट के अनुसार भारत के साथ अमेरिकी व्यापार घाटा पिछले साल 23.8 बिलियन डॉलर था, जो साल 2019 की तुलना में 1.7% अधिक है। भारत को माल का निर्यात 27.4 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 20.1 प्रतिशत (6.9 बिलियन अमरीकी डॉलर) कम है। भारत से आयात 51.2 अरब डॉलर रहा जो 11.3 फीसदी कम है। अमेरिका ने इसका दोष प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत योजना पर मढ़ा है, अमेरिकी वाणिज्य मामलों की एजेंसी यूएसटीआर ने भारत पर जारी 570 पेज की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है। नोटेबंदी और कोविड की पहली और दूसरी लहर की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व मंदी का सामना कर रही है। पिछले 70 सालों में ऐसी स्थिति कभी नहीं बनी।
इसी तरह, ‘द फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में बताया है बताया कि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के डेटाबेस के मुताबिक़ भारत की बेरोजगारी दर साल 2020 में बढ़कर 7.11 फीसदी हो गई। जो कम से कम तीन दशकों में सबसे ज़्यादा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2021 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में 12,889 कंपनियों को आधिकारिक रिकॉर्ड से हटा दिया गया और इसी अवधि के दौरान 87 कंपनियों को भंग कर दिया गया।
कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने राज्यसभा को जो आंकड़े उपलब्ध कराए हैं उसके मुताबिक़ कंपनी अधिनियम, साल 2013 की धारा 248 के तहत 2018 से जून, 2021 की अवधि के दौरान कुल 2,38,223 कंपनियों को बंद कर दिया गया और 651 को भंग कर दिया गया। अप्रैल, 2018 और अगस्त, 2019 के बीच चीन से अपना उत्पादन स्थानांतरित करने वाली 56 कंपनियों में से केवल तीन भारत और दो इंडोनेशिया गईं। जपानी वित्तीय समूह नोमुरा ने अपने एक अध्ययन में ये खोज है। 56 फर्मों में से 26 वियतनाम में स्थानांतरित हो गईं, 11 ताइवान और आठ थाईलैंड चली गईं।
वहीं, पिछले पांच वर्षों में, देश में पांच ऑटोमोबाइल कंपनियों ने अपना कामकाज बंद कर दिया है, सरकार ने लोकसभा में ये जानकारी दी है।
जिन विदेशी कम्पनियों ने अपने फैक्टरी में ताला लगा दिया है उनमें मैन ट्रक्स, जनरल मोटर्स और हार्ले डेविडसन जैसी कम्पनियां शामिल हैं,
कहना गलत ना होगा कि भारत का बिजनेस ग्रोथ बाजार के उठापटक का शिकार हो चुका है, अपनी व्यवसाय-समर्थक छवि (प्रो बिज़नेस इमेज) के बावजूद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की अर्थव्यवस्था के प्रबंधन को लेकर तेजी से नाकाम हो रहे हैं। वर्ष 2025 तक $5 ट्रिलियन का विशाल इकॉनमी खड़ा करने का उनका सपना अब तेजी से अविश्वसनीय बिखरता नजर आ रहा है।
भारत की मौजूदा कमज़ोर आर्थिक स्थिति के हालात में अमेरिकी सरकार को शायद ये लगता है गांधी की याद दिलाकर, कथित तौर पर मानवाधिकार उल्लंघन पर चिंता व्यक्त कर भारत के साथ जारी ट्रेड डिफिसिट को कम किया जा सकता है और भारत के साथ व्यापर बढ़ाने और चीन से मुक़ाबला करने के लिए आपसी सामरिक रिश्ते को मज़बूत करने का ये एक सुनहरा मौक़ा है।
सैयद रूमान शमीम हाशमी, एडिटर इन चीफ