नई दिल्ली: थल सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे (Gen MM Naravane) ने भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने पर केंद्रित एक संगोष्ठी में कहा है कि बढ़े हुए द्विपक्षीय संबंध अधिक चुनौतियां लेकर आते हैं, इसलिए दोनों देशों को संयुक्त रूप से और धैर्य के साथ ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। भारत और बांग्लादेश की दोस्ती उन बांग्ला लोगों की सामूहिक इच्छा का सम्मान है, जिन्होंने एक स्वतंत्र बांग्ला राष्ट्र के सपने को जन्म देने के लिए आगे बढ़कर नेतृत्व किया। यह दोस्ती उन बेशुमार स्वतंत्रता सेनानियों के लिए श्रद्धांजलि भी है जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।
‘भारत-बांग्लादेश: मित्रता के 50 वर्ष’ विषय पर हुई संगोष्ठी
जनरल नरवणे भारत-बांग्लादेश की दोस्ती के 50 साल और पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में निर्णायक जीत होने के मौके पर सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज (सीएलएडब्ल्यूएस) की ओर से आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। भारत अंतरराष्ट्रीय केंद्र (आईआईसी) में ‘भारत-बांग्लादेश: मित्रता के पचास वर्ष’ विषय पर हुई इस संगोष्ठी में सॉफ्ट पावर डिप्लोमैटिक टूल्स के रूप में पर्यटन और सामान्य संस्कृति, बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी और आर्थिक एकीकरण की आवश्यकता जैसे उपायों पर विचार-विमर्श किया गया।
स्वतंत्रता सेनानियों के लिए श्रद्धांजलि है ये दोस्ती
सेना प्रमुख ने कहा कि भारत और बांग्लादेश की दोस्ती उन बांग्ला लोगों की सामूहिक इच्छा का सम्मान है, जो स्वतंत्रता और अधिकार के लिए खड़े थे। उनके लिए श्रद्धांजलि है जिन बेशुमार स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी मातृभूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। उनका भी सम्मान है जिन्होंने एक स्वतंत्र बांग्ला राष्ट्र के सपने को जन्म देने के लिए आगे बढ़कर नेतृत्व किया। उन्होंने यह भी कहा कि यह दोस्ती इस महासंघर्ष में भारतीय सेना की भूमिका और योगदान की स्वीकृति है जिसने हमारे लाखों भाइयों और बहनों के जीवन और भाग्य को बदल दिया।
मजबूत राजनयिक और रक्षा संबंध आवश्यक
बांग्लादेश के उच्चायुक्त एच.ई. मुहम्मद इमरान और बांग्लादेश सेना के पूर्व सीओएएस लेफ्टिनेंट जनरल एम हारुन-अर-रशीद ने बांग्लादेश-भारत संबंधों में प्रगति के बारे में बात की और मजबूत राजनयिक और रक्षा संबंधों की आवश्यकता को दोहराया। उनका विचार था कि दोनों देशों को क्षेत्र में शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने की दिशा में काम करना चाहिए। 1971 के युद्ध में शामिल रहे पूर्व सीओएएस ने उन दिनों को याद करते हुए अत्याधुनिक तकनीक के साथ सशस्त्र बलों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता के लिए प्रोत्साहित किया।
1971 युद्ध पर आधारित किताब का विमोचन
कार्यक्रम के दौरान ‘बांग्लादेश लिबरेशन@50 इयर्स: बिजॉय’ विद सिनर्जी: इंडिया-पाकिस्तान वॉर 1971′ नामक पुस्तक का भी विमोचन किया गया। इस पुस्तक में 1971 के युद्ध का ऐतिहासिक वर्णन किया गया है। पुस्तक के भारत और बांग्लादेश के लेखक युद्ध में शामिल रहे हैं। बांग्लादेश के पूर्व विदेश सचिव राजदूत शमशेर चौधरी ने पुस्तक में युद्ध के बारे में और पाकिस्तानी सेना के साथ युद्ध के कैदी (पीओडब्ल्यू) होने के अपने अनुभव को साझा किया। उन्होंने उन अत्याचारों और यातनाओं का भी खुलासा किया जो बांग्लादेशी पीओडब्ल्यू को पाकिस्तानी बलों के हाथों झेलनी पड़ी थीं।