भोपाल: देश में जल्द ही कॉमन सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) CAA लागू हो सकती हैं। केंद्रीय गृह मंत्री Amit Shah ने शुक्रवार को भोपाल दौरे पर ये संकेत दिए। भाजपा के पार्टी कार्यालय में उन्होंने कोर कमेटी के साथ मीटिंग की। मीटिंग में शाह ने कहा- CAA, राममंदिर, अनुच्छेद 370 और ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों के फैसले हो गए हैं। अब बारी कॉमन सिविल कोड की हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि उत्तराखंड में कॉमन सिविल कोड पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू किया जा रहा हैं। ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा हैं। जो भी बचा हैं, सब ठीक कर देंगे। आप लोग कोई भी ऐसा काम मत करना, जिससे पार्टी को नुकसान पहुंचे।
चिंता मत करना, कांग्रेस और नीचे जाएगी:
इससे पहले उन्होंने प्रदेश के सीनियर नेताओं से पूछा कि क्या देश में सब ठीक हो गया? इसके बाद उन्होंने कॉमन सिविल कोड के मुद्दे की चर्चा की। शाह ने यह भी खुलासा किया कि अगले चुनाव से पहले राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष हो जाएंगे, लेकिन इससे चिंता करने की जरूरत नहीं। अभी कांग्रेस और नीचे जाएगी। कोई चुनौती नहीं हैं।
इस बैठक में प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ तमाम बड़े नेता मौजूद रहे। शाह सीमा सुरक्षा बल (BSF) के विमान से दिल्ली लौटे। उनके साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया और सांसद राकेश सिंह भी गए।
क्या हैं कॉमन सिविल कोड?
इसके लागू होने से देश में शादी, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने जैसे सामाजिक मुद्दे एक समान कानून के अंतर्गत आ जाएंगे। इसमें धर्म के आधार पर कोई कोर्ट या अलग व्यवस्था नहीं होगी। संविधान का अनुच्छेद 44 इसे बनाने की शक्ति देता हैं। इसे केवल केंद्र सरकार संसद के जरिये ही लागू कर सकती हैं।
प्रदेश अध्यक्ष के कमरे में अलग से बैठक:
पार्टी में सभी बड़े नेताओं, मंत्रियों, विधायकों के साथ बैठक से पहले शाह ने प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के कक्ष में मुख्यमंत्री, प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव, पंकजा मुंडे, हितानंद शर्मा, कैलाश विजयवर्गीय, ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रहलाद पटेल आदि के साथ अहम मुद्दों पर बात की।
कब शुरू हुई समान नागरिक संहिता की मांग?
आजादी से पहले हिंदुओं और मुस्लिमों के लिए अलग-अलग कानून लागू किए गए थे। सबसे पहले महिलाएं इसके खिलाफ खड़ी हुईं। फिर बीजेपी ने इसे अपने तीन मुख्य मुद्दे में शामिल किया। 2014 के लोकसभा चुनाव के घोषणा पत्र में भी यह मुद्दा शामिल था।
उदाहरण से बताया मेहनत और परिश्रम का अंतर:
शाह ने बंगाल से जोड़कर एक उदाहरण दिया कि वहां एक नेता ने कहा कि वे संगठन के लिए बहुत मेहनत करते हैं। रोज 12 बजे समर्पण निधि के 100 रुपए लेने के लिए सांसद के घर जाते हैं, लेकिन वे नहीं मिलते, जबकि होना ये चाहिए कि यदि वे सुबह 7 बजे उनके घर पहुंच जाएं तो पैसा मिल जाए। यही मेहनत और परिश्रम में अंतर हैं।
ओडिशा के प्रदेश अध्यक्ष को जब राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते बूथ की मजबूती के बारे में बताया तो वहां पीठ पीछे लोग हंसते थे। उन्होंने कहा कि संगठन में अध्यक्ष सर्वोपरि होता हैं। भले ही वो उम्र में छोटा क्यों ना हो। मैं भी छोटी उम्र में अध्यक्ष बना था।
इन मुद्दों पर बोले Amit Shah:
जातिवाद पर: जातिवाद अब देश की सच्चाई हैं। इसलिए अब इस हिसाब से ही कैलकुलेशन करके हर जाति के नेता को पद और महत्व देना होगा।
2018 के विधानसभा चुनाव में हार पर: विधानसभा चुनाव में भाजपा हारी, लेकिन वोट प्रतिशत ज्यादा था। गलतियां हुईं, जिसकी समीक्षा की गई। अब मुख्यमंत्री के प्रयासों से जनमत बढ़ रहा हैं। इस कवायद में संगठन की भूमिका जरूरी हैं। सिर्फ सरकारों के काम से चुनाव नहीं जीते जाते। संगठन की मजबूती चुनाव जिताएगी।
नेताओं के रवैये पर दिल्ली का उदाहरण: दिल्ली में बड़े नेताओं की कार्यकर्ताओं से दूरी बढ़ी। सम्मान घटा। अनुशासन की कमी आती गई। यह स्थिति मध्य प्रदेश में नहीं होनी चाहिए। संगठन के मामले में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़ और राजस्थान उदाहरण हैं। इससे बरकरार रखें।
सत्ता के लाभार्थी नेताओं पर: बैठक में जितने लोग हैं, ये सत्ता के लाभार्थी (बैनेफिशरी) हैं। फिर CM की तरफ देखकर कहा कि सबसे बड़े लाभार्थी तो ये हैं। अब जरूरत हैं कि वे बूथों तक जाएं। हर नेता को 10 बूथ की मजबूती का लक्ष्य लेना चाहिए।