नई दिल्ली: गृह मंत्री Amit Shah ने 2002 में गुजरात दंगों पर आज अपनी चुप्पी तोड़ी। न्यूज एजेंसी ANI को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले, अदालती कार्रवाई के दौरान मीडिया, गैर सरकारी संगठनों और राजनीतिक दलों की भूमिका पर बात की।
शाह ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट ने सिद्ध कर दिया कि तत्कालीन गुजरात सरकार पर लगाए गए सभी आरोप पॉलिटिकली मोटिवेटेड थे। पूरी न्यायिक प्रकिया के दौरान नरेंद्र मोदी जी ने कोई बयान नहीं दिया। हमने न्यायिक प्रकिया में लगातार सहयोग किया। जिन लोगों ने भी मोदी जी पर आरोप लगाए थे, उन्हें भाजपा और मोदी जी से माफी मांगनी चाहिए। करीब 40 मिनट के इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि PM मोदी ने हमेशा से न्यायपालिका में विश्वास रखा हैं।
गुजरात दंगों में सुप्रीम कोर्ट ने जकिया की याचिका खारिज की थी:
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को PM मोदी के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज कर दी थी। यह याचिका 2002 गुजरात दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाली SIT रिपोर्ट के खिलाफ दाखिल की गई थी।
यह याचिका जकिया जाफरी ने दाखिल की थी। जकिया जाफरी के पति एहसान जाफरी की इन दंगों में मौत हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जकिया की याचिका में मेरिट नहीं हैं।
जकिया ने मजिस्ट्रेट के आदेश को दी थी चुनौती:
72 साल के एहसान जाफरी कांग्रेस नेता और सांसद थे। उन्हें उत्तरी अहमदाबाद में गुलबर्ग सोसाइटी के उनके घर से निकालकर गुस्साई भीड़ ने मार डाला था। जकिया ने दंगे की साजिश के मामले में मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी थी।
मजिस्ट्रेट ने SIT की उस क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार किया था, जिसमें तत्कालीन CM नरेंद्र मोदी समेत 63 लोगों को दंगों की साजिश रचने के आरोप से आजाद किया गया था। हाईकोर्ट भी इस फैसले को सही करार दे चुका हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2021 में फैसला सुरक्षित रखा:
यह मामला जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने सुना। सुप्रीम कोर्ट ने जकिया की याचिका पर सिर्फ 14 दिन में सुनवाई पूरी की और 9 दिसंबर 2021 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, SIT की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और गुजरात की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें दीं।
सिब्बल की दलील- अहम पहलुओं को नजरअंदाज किया गया:
इसे केस में याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि SIT ने मामले के महत्वपूर्ण पहलुओं पर जांच नहीं की। इससे साबित होता कि पुलिस इस केस में एक्टिव नहीं रही। सिब्बल ने यह भी कहा कि SIT ने जिस तरह जांच की उससे लगता हैं कि वह कुछ छिपाने की कोशिश कर रही हैं।
SIT की दलील- हमने अपना काम किया:
SIT के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा- किसी को नहीं बचाया गया और पूरी छानबीन गहराई से हुई हैं। कुल 275 लोगों से पूछताछ हुई। कोई ऐसा सबूत नहीं मिला जिससे साजिश की बात साबित होती हो।
जकिया ने हत्या का केस दर्ज करने की मांग की थी:
गुजरात दंगों के बाद जकिया ने 2006 में राज्य के DGP (पुलिस महानिदेशक) के सामने नरेंद्र मोदी, कई अफसरों और नेताओं के खिलाफ शिकायत की थी। जकिया की मांग थी कि इन लोगों के खिलाफ हत्या समेत कई अन्य धाराओं में FIR दर्ज की जाए। तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
सुप्रीम कोर्ट ने SIT गठित की थी:
2008 में सुप्रीम कोर्ट ने SIT का गठन किया। उसे इस मामले में हुईं तमाम सुनवाइयों पर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया। बाद में जकिया की शिकायत की जांच भी SIT को सौंपी गई। SIT ने मोदी को क्लीन चिट दी और 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर SIT ने मजिस्ट्रेट को क्लोजर रिपोर्ट सौंपी।
2013 में जकिया ने क्लोजर रिपोर्ट का विरोध करते हुए मजिस्ट्रेट के सामने याचिका दायर की। मजिस्ट्रेट ने यह याचिका खारिज कर दी। इसके बाद जाकिया ने गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने 2017 में मजिस्ट्रेट का फैसला बरकरार रखा। तब जकिया ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
क्या हैं गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड मामला:
गोधरा कांड के बाद 2002 में गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई थी। उपद्रवियों ने पूर्वी अहमदाबाद स्थित अल्पसंख्यक समुदाय की बस्ती ‘गुलबर्ग सोसाइटी’ को निशाना बनाया था। इसमें पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोग मारे गए थे। इनमें से 38 लोगों के शव बरामद हुए थे, जबकि जाफरी सहित 31 लोगों को लापता बताया गया।