डिंपल को प्रचार के लिए लेट उतारना महंगा पड़ा!: जहां-जहां गईं, एक सीट छोड़ सभी जीती

BJP Dimple

लखनऊ: यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के चुनाव प्रचार में डिंपल Dimple यादव हिट रहीं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने उन्हें आखिरी चरणों में मुश्किल सीटों पर प्रचार के लिए उतारकर सीटें अपनी झोली में डलवा ली। कौशांबी और जौनपुर में हुई जनसभाओं में सिर्फ एक सीट ही BJP के खाते में जुड़ सकी। वो भी बहुत कम मार्जिन के साथ।

सिराथू सीट पर सपा उम्‍मीदवार और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की बहन पल्‍लवी पटेल का प्रचार करने पहुंची डिंपल यादव ने जंग का रंग बताकर सीएम योगी की केसरिया पोशाक पर तंज कसा तो राजनीतिक हल्‍कों में इसकी खूब चर्चा हुई। इसी जनसभा में सपा सांसद जया बच्‍चन ने भी ‘वे क्‍या जानें परिवार क्‍या होता हैं…’ का बयान दिया था। हालांकि, सुर्खियों में डिंपल नजर आईं। भीड़ उन्हें सुनने के लिए सभी सीटों पर इकट्‌ठा हुई। कह सकते हैं कि चुनाव में जहां-जहां उन्होंने प्रचार किया 80% सीटें सपा को ही मिली।

पल्लवी से कांटे की टक्कर में हारे डिप्टी सीएम केशव:

विधानसभा चुनाव के पांचवें चरण में पहली जनसभा डिंपल ने सिराथू में पल्लवी पटेल के लिए की। पल्लवी के लिए ये सीट मुश्किल इसलिए थी, क्योंकि उनके सामने यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य खुद चुनाव मैदान में थे। भाजपा का पूरा संगठन यहां ताकत झोंक रहा था। सिराथू सीट पर केशव का अच्छा प्रभाव माना जाता हैं। डिंपल की जनसभा होने के बाद यहां पल्लवी टक्कर में आ गई। स्ठिति ये रही कि शुरुआती चरणों से ही पल्लवी ने बढ़त बना ली, जो कि आखिरी चरणों तक बनी रही।

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कड़े मुकाबले के बाद साइकिल ही चली:

कौशांबी की ही चायल विधान सभा में पार्टी प्रत्याशी पूजा पाल के समर्थन में सभा की। पूजा पाल पूर्व विधायक राजू पाल की पत्नी हैं। उनकी हत्या वर्ष 2005 में कर दी गई थी। यहां पूजा का मुकाबला अपना दल (सोनेलाल) के नागेंद्र प्रताप सिंह पटेल से था। यहां भी कड़ा मुकाबला रहा। नागेंद्र को 75472 मत मिले। 88818 वोट लेकर पूजा पाल ने जीत दर्ज की।

यहां भाजपा संगठन के प्रचार के खिलाफ डिंपल की एक जनसभा ही भारी:

यहां भाजपा की तरफ से लाल बहादुर चुनावी मैदान में थे। भाजपा संगठन उनके लिए प्रचार कर रहा था। डिंपल ने यहां इंद्रजीत सरोज के लिए सिर्फ एक जनसभा की थी। उसमें उन्हें सुनने के लिए आस-पास की सीटों के लोग तक पहुंचे थे। मतगणना में सामने आया कि लाल बहादुर को 97928 वोट मिले। इंद्रजीत सरोज ने 121506 वोट हासिल किए।

सिर्फ 1206 वोट से फिसली बाजी:

भाजपा के घटक दल अपना दल (सोनेलाल) के प्रत्याशी डॉ. आरके पटेल जौनपुर की मड़ियाहू सीट से खड़े थे। उन्हें सपा की प्रत्याशी सुषमा पटेल से चुनौती थी। यहां डिंपल ने जनसभा की। यहां कांटे की टक्कर ऐसी कि पूरी बाजी सिर्फ 1206 वोटों से ही सरकी। यहां डॉ. आरके पटेल को 76007 वोट मिले। सुषमा को 74801 वोट मिले।

डिंपल के प्रचार का डॉक्टर रागिनी को फायदा:

सातवें चरण के प्रचार में मछलीशहर आता हैं। मछलीशहर से डॉ रागिनी चुनाव लड़ रही थीं। वाराणसी कैंट की रहने वाली डॉ. रागिनी MD हैं। सपा की इस डॉक्टर प्रत्याशी के लिए भी डिंपल ने प्रचार किया। नतीजा ये रहा कि रागनी को 91659 वोट मिले। भाजपा के प्रत्याशी महिलाल 83175 वोट पाकर हार गए थे।

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इसलिए डिंपल यादव से आखिरी चरण में प्रचार कराया:

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश ने शुरुआती चरणों में खुद ही प्रचार का जिम्मा संभाल रखा था। इन चरणों में अखिलेश ने जयंत चौधरी, स्वामी प्रसाद मौर्य, ओमप्रकाश राजभर और शिवपाल यादव को साथ रखकर प्रचार किया। करहल, मैनपुरी, इटावा में मुलायम सिंह यादव से भी सभाएं कराई गईं। आखिरी चरणों की सीटों पर जयंत का प्रभाव कम था।

स्वामी प्रसाद मौर्य और ओपी राजभर भी अपने प्रभाव वाली सीटों पर प्रचार में लगे रहे। इसलिए अखिलेश को पूर्वांचल की अधिकांश सीटों पर सपा के पक्ष में प्रचार के लिए डिंपल यादव को मैदान में उतारना पड़ा। हालांकि, इस बार डिंपल की रैलियों और सभाओं की सूची पहले से जारी करने के बजाए एक दिन पहले ही जारी की गई थी।

डिंपल को क्यों दूर रखा, ये भी जानिए:

पांच चरणों के प्रचार तक डिंपल यादव ने प्रचार से दूरी बना रखी थी। इसके पीछे पिछले चुनाव में डिंपल के साथ हुई घटना को बड़ी वजह माना जा रहा हैं। दरअसल, 2017 में हुई एक सभा में डिंपल जब मंच से बोल रही थीं, तो पार्टी कार्यकर्ताओं ने अभद्र नारे लगाए थे। इसके बाद डिंपल को बीच में ही रैली को छोड़ना पड़ा था। इस घटना के बाद डिंपल जब-जब अखिलेश यादव के साथ बाहर निकलतीं, तो उन्हें देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता। पार्टी के कार्यकर्ताओं की ऐसी हरकतों के कारण अखिलेश ने चाहकर भी उन्हें प्रचार के लिए चुनावी मैदान में नहीं उतरने दिया था।

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