नई दिल्ली: पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान (PAK) की मीडिया में इन दिनों पाक सरकार पर हमले हो रहे हैं और सवाल पूछे जा रहे हैं कि एक साथ 1947 में आजाद होने वाला भारत लगातार आर्थिक तरक्की कर रहा है जबकि वहीं, पाकिस्तान की हालात दिनों दिन खास्ताहाल क्यों हो रही है? इसके साथ ही यह भी पूछा जा रहा है कि पाकिस्तान में राजनैतिक दुश्मनी इतनी क्यों बढ़ रही है कि यहां कोई भी प्रधानमंत्री पद से हटते ही बेईमान, चोर, आतंकी और विद्रोही ना जाने क्या-क्या बन जाते हैं।
दरअसल, इन दिनों पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर कानूनी कार्रवाई का शिकंजा बढ़ता नजर आ रहा है। इस्लामाबाद के कोर्ट ने उनके खिलाफ दो-दो गैर जमानती वारंट जारी किए हैं और उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए हैं। इसके पालन के लिए इस्लामाबाद पुलिस सोमवार को हेलीकॉप्टर से लाहौर पहुंची थी लेकिन इमरान खान समर्थकों संग सड़कों पर उतरकर रैली करने लगे थे।
पाकिस्तानी अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ में छपे एक आलेख में सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी रिसर्च के डायरेक्टर इम्तियाज गुल ने सवाल उठाए हैं कि आखिर पाकिस्तान का हर एक प्रधानमंत्री पद से हटते ही अपराधी क्यों बन जाता है। डायरेक्टर गुल ने पाकिस्तानी सिस्टम पर तंज कसते हुए कहा- ‘कैसे पूरा सिस्टम राजनैतिक इशारे पर राजनीतिक एजेंडे के तहत काम करने लगता है।’
उन्होंने लिखा है कि 75 सालों के इतिहास में पाकिस्तान पीछे की ओर लगातार जा रहा है जबकि हिन्दुस्तान अभूतपूर्व प्रगति कर रहा है। उन्होंने लिखा है कि भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन होने जा रहा है लेकिन पाकिस्तान में आंतरिक हालात दिनों दिन बिगड़ती चली जा रही हैं।
आलेख में कहा गया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनके सहयोगियों के खिलाफ दर्जनों केस पाकिस्तान में शासन करने वाली क्षुद्र, संकीर्ण राजनीतिक और नौकरशाही मानसिकता को दर्शाते हैं। हर कोई हैरान है कि कैसे एक पूर्व प्रधानमंत्री अचानक अपराधी, आतंकवादी और बागी में बदल गया।
उन्होंने भारत के बारे में लिखा- जिस देश में बचपन से हमें बताया जाता रहा है कि हिंदुस्तान को ‘कुचला’ जाना चाहिए, वह अभूतपूर्व तरीके से ऊपर की ओर सरपट दौड़ रहा है। यह एक दृढ़ विदेश नीति का ही लाभांश है, जो वर्ष 2000 के आसपास पुनर्गठित किया गया था।
आलेख में आगे लिखा कि पाकिस्तान में सरकार की आलोचना करना देशद्रोह के समान हो गया है। उन्होंने लिखा है कि देशद्रोह के कई मामले और वर्तमान व्यवस्था के आलोचक विपक्षी नेताओं और पत्रकारों की गिरफ्तारी ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है कि क्या पाकिस्तान 1970/1980 के क्रूर अमेरिकी समर्थक सैन्य तानाशाही के दौर में पहुंच गया है, जब मीडिया और विपक्ष का उत्पीड़न होता था और मुंह बंद करने के लिए उन्हें अवैध तरीके से हिरासत में रखा जाता था।