नई दिल्ली: आज देशभर में महाशिवरात्रि Maha shivratri उत्सव मनाया जा रहा हैं। इस मौके पर सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा योग केंद्र कोयंबटूर तमिलनाडु में खास आयोजन किए गए हैं, यहां पूरे 12 घंटे तक महाशिवरात्रि मनाई जाएगी। महोत्सव 1 मार्च की शाम 6 बजे से शुरू होगा और अगली सुबह 6 बजे तक चलेगा। इस प्रोग्राम में 170 देशों के 1 करोड़ से ज्यादा लोग हिस्सा लेंगे। जिन लोगों ने पहले से ही रजिस्ट्रेशन करा लिया हैं वो कार्यक्रमस्थल पर पहुंचेंगे जबकि वॉलिंटियर्स ऑनलाइन माध्यम से ही प्रोग्राम का हिस्सा बनेंगे।
कई दिग्गज करेंगे परफॉर्म:
ईशा योग केंद्र महाशिवरात्रि प्रोग्राम को सद्गुरु के यूट्यूब चैनल पर लाइवस्ट्रीम करेगा। प्रोग्राम अंग्रेजी, तमिल, हिंदी, तेलुगु, कन्नड़, मराठी सहित 16 भाषाओं प्रसारित किया जाएगा। प्रोग्राम में पेपोन, मास्टर सलीम, हंसराज रघुवंशी, मंगली और शॉन रोल्डन जैसे कलाकार ईशा फाउंडेशन के बैंड साउंड्स ऑफ ईशा के साथ परफॉर्म करेंगे।
कोविड प्रोटोकॉल से भक्तों की एंट्री बैन:
कोरोना महामारी और प्रोटोकॉल के चलते इस बार प्रोग्राम में भक्तों को एंट्री नहीं दी जाएगी। प्रोग्राम में सिर्फ वही लोग शामिल हो सकेंगे, जिन्हें इनवाइट किया गया हैं। हालांकि, भक्त घर पर ही बैठकर टीवी और सोशल मीडिया पर प्रोग्राम देख सकेंगे। प्रोग्राम में ऑनलाइन या ऑफलाइन शामिल होने वाले लोगों को प्राण-प्रतिष्ठित रुद्राक्ष भी दिए जाएंगे।
मान्यता हैं कि महाशिवरात्रि की रात रीढ़ की हड्डी को सीधी रखते हुए पूरी रात जागते रहना और जागरूक रहना, शारीरिक और आध्यात्मिक जीवन के लिए बहुत फायदेमंद होता हैं। महाशिवरात्रि के बाद यहां लगातार 7 दिनों तक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।
ईशा योग के अनुसार कौन हैं शिव?
जिस विशाल खालीपन को हम शिव कहते हैं, वह असीम हैं, शाश्वत हैं। लेकिन चूंकि इंसान का बोध, रूप और आकार तक सीमित होता हैं, इसलिए हमारी संस्कृति में शिव के लिए बहुत तरह के रूपों की कल्पना की गई। शिव सब कुछ हैं, वे सबसे बदसूरत हैं, और सबसे खूबसूरत भी हैं। वे सबसे अच्छे और सबसे बुरे हैं, वे सबसे अनुशासित भी हैं। तो शिव का व्यक्तित्व पूरी तरह जीवन के विरोधी पहलुओं से बना हैं।
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Maha shivratri का महत्व:
महाशिवरात्रि, अध्यात्म मार्ग पर चलने वालों और गृहस्थ लोग, दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। गृहस्थ महाशिवरात्रि को शिव की शादी की सालगिरह की तरह मनाते हैं, लेकिन तपस्वियों के लिए यह वो दिन हैं जब शिव कैलाश के साथ एक हो गए थे, जब वे पर्वत की तरह निश्चल और पूरी तरह शांत हो गए थे। कृष्णपक्ष में हरेक चन्द्रमास का चौदहवां दिन या अमावस्या से पहले वाला दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता हैं।