इतिहास से अच्छा कोई दूसरा गुरु नहीं हो सकता। इतिहास महज खुद में घटनाओं को नहीं समेटता, बल्कि हमें बहुत कुछ सिखाता भी है। ऐसे ही हर दिन किसी न किसी इतिहास से जुड़ा होता है। इसी तरह भारत के इतिहास में आज यानि 13 मार्च का दिन बहुत अहमियत रखता है। दरअसल, आज ही के दिन यानि 13 मार्च को सन् 1940 में क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी शहीद उधम सिंह (Udham Singh) ने माइकल ओ डायर (Michael O Dyer) को गोली मारी थी, जो जलियां वाला बाग हत्याकांड के समय पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था।
इंग्लैंड जाकर मारी थी जनरल डायर को गोली
उधम सिंह वह युवा क्रांतिकारी थे जिन्होंने इंग्लैंड जाकर माइकल ओ डायर पर गोलियां बरसाकर जलियांवाला बाग की घटना का बदला लिया था। जी हां, उधम सिंह अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने लंदन तक गए। वहां उन्होंने 13 मार्च, 1940 को पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
उधम सिंह वहां से भागे नहीं बल्कि खड़े रहे
इसके बाद उधम सिंह वहां से भागे नहीं बल्कि खड़े रहे। ब्रिटेन में ही उन पर मुकदमा चला और 4 जून, 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई, 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।
उधम सिंह का जन्म पंजाब के संगरूर जिले में हुआ था, उस समय लोग उन्हें शेर सिंह के नाम से जानते थे। दुर्भाग्य वश उनके सिर से माता-पिता का साया शीघ्र ही हट गया था। ऐसी दुखद परिस्थिति में अमृतसर के खालसा अनाथालय में बालक उधम ने आगे का जीवन व्यतीत किया। उस समय पंजाब में तीव्र राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई थी। उधम सिंह ने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई की। वह अमर शहीद भगत सिंह क्रांतिकारी के कार्यों से प्रभावित थे। कश्मीर में जब उनको शहीद भगत सिंह की तस्वीर के साथ पकड़ा तो उन्हें उनका सहयोगी माना गया।
जलियांवाला बाग की पूरी कहानी
जलियां वाले बाग में अंग्रेजों ने अकारण निर्दोष लोगों को गोलियों से छलनी कर मौत के घाट उतार दिया था। इसमें बुजुर्ग, बच्चे, महिलाएं और नौजवान सभी शामिल थे। इस दिल दहला देने वाली घटना को उधम सिंह ने अपनी आंखों से देख लिया था, जिसका उन्हें गहरा दुख हुआ और उसी समय ठान लिया कि यह सब कुछ जिसके इशारे पर हुआ है उसको सजा जरूर देकर रहेंगे। उन्होंने उसी समय प्रण कर अपने संकल्प को पूरा करने के लिए अपने नाम को अलग-अलग जगहों पर बदला और कई देशों में यात्राएं की।
1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और ऐसे दिया घटना को अंजाम
महज इतना ही नहीं उन्होंने एक पार्टी का निर्माण किया और उससे जुड़ भी गए। उनको बिना लाइसेंस हथियार रखने पर गिरफ्तार कर लिया गया। वह चार साल जेल में सिर्फ यही सोच कर रहे कि बाहर निकल कर हत्यारे जनरल डायर को मारेंगे। जेल से रिहा होने के बाद वह अपने संकल्प को पूरा करने के लिए कश्मीर गए फिर वह जर्मनी चले गए। साल 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंच गए और वहां अपने कार्य को अंजाम देने के लिए सही समय का इंतजार करना शुरू कर दिया।
लंदन के रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी के कास्टन हाल में बैठक थी, जहां माइकल ओ’ डायर को आना था। उधम सिंह भी वहां जाकर बैठ गए थे। जैसे ही वह बैठक में समीप आया वैसे ही उन्होंने जनरल डायर पर दो गोलियां चलाई। घटना स्थल पर ही उसकी मृत्यु हो गई और उधम सिंह उसी जगह पर शांत खड़े रहे और अपना आत्मसमर्पण कर दिया। देश के इस वीर सपूत ने जलियां वाला बाग के 21 साल बाद 31 मार्च 1940 को डायर को उसके किए की सजा दी। वहीं उधम सिंह को डायर की मृत्यु का दोषी घोषित कर 31 जुलाई, 1940 को लंदन में फांसी की सजा दी गई। उनके मृत शरीर के अवशेषों को उनकी पुण्यतिथि 31 जुलाई, 1974 के दिन भारत को सौंप दिया गया था।