2018 में आई अक्षय कुमार की फिल्म ने पैडमैन से तो मिलवाया, लेकिन क्या आपने पैडवुमन padwoman के बारे में सुना हैं। मध्य प्रदेश में नरसिंहपुर जिले के मेहरा गांव की रहने वाली माया विश्वकर्मा पैडवुमन ऑफ इंडिया के नाम से भी मशहूर हैं। 26 साल की उम्र तक सैनेटरी पैड pad के उपयोग से अनजान रहीं माया अब देशभर के ग्रामीण इलाकों में पीरियड्स पर लोगों को जागरूक कर रही हैं।
अपने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए माया ने कैलिफोर्निया में मिली नौकरी तक छोड़ दी। 2016 में अपने NGO की शुरुआत करने के बाद से माया अब तक कई महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना चुकी हैं। दैनिक भास्कर से खास बातचीत में माया ने अपने दिलचस्प और प्रेरक सफर को साझा किया।
माहवारी पर खुलकर बात करना चाहती थीं माया:
माया ने नरसिंहपुर के एक सरकारी स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई की। इसके बाद जबलपुर से बायोटेक्नोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएशन और AIIMS दिल्ली में रिसर्च वर्क किया। उन्हें अमेरिकी शहर कैलिफोर्निया में कैंसर पर रिसर्च करने का मौका मिला। माया कहती हैं कि वे बचपन से ही माहवारी जैसे टैबू पर खुलकर बात करना चाहती थीं। हालांकि, पढ़ाई-लिखाई और नौकरी के बीच उन्हें ऐसा करने का मौका नहीं मिला।
करियर में आगे बढ़ने के बाद भी माया अपने कामकाज से असंतुष्ट थीं। उन्होंने सब कुछ छोड़कर अपने गांव में सामाजिक कार्य करने का फैसला लिया। माया ने माहवारी से जुड़ी बहुत-सी दिक्कतों का सामना किया था, इसलिए उन्होंने गांव-गांव जाकर महिलाओं-बच्चियों से मेंस्ट्रुअल हाइजीन (माहवारी स्वच्छता) पर बात करनी शुरू की।
26 साल तक हर महीने किया कपड़े का इस्तेमाल:
भारत में आज भी सैनेटरी नैपकिन्स पर फुसफुसाकर बात की जाती हैं। 39 साल की माया कहती हैं कि देश के कई घरों की तरह उनके घर में भी पीरियड्स से जुड़ी बातें खुलकर नहीं होती थीं। पहली बार माहवारी आने पर उन्हें भी घर की महिलाओं ने कपड़े इस्तेमाल करने की सलाह दी थी। इसके बाद से 26 साल की उम्र तक उन्होंने कपड़े का ही उपयोग किया। इससे उन्हें कई बार इन्फेक्शन भी हुआ। इसी कारण माया अपने गांव की महिलाओं को मेंस्ट्रुअल हाइजीन का महत्व बताना चाहती थीं, क्योंकि शहरों के मुकाबले गांवों में ये समस्या ज्यादा हैं।
2016 में की सुकर्मा फाउंडेशन की शुरुआत:
2014 में देश लौटने के बाद माया पैडमैन के नाम से मशहूर अरुणाचलम मुरुगनाथम से मिलीं। इस मुलाकात के बाद उन्होंने पीरियड्स पर जागरुकता बढ़ाने को ही अपनी प्राथमिकता बना लिया। माया ने मार्च 2016 में NGO सुकर्मा फाउंडेशन की शुरुआत की। इसके साथ ही उन्होंने मेंस्ट्रुअल हाइजीन अभियान शुरू किया और 15 आदिवासी जिलों में जाकर सैकड़ों महिलाओं को जागरूक किया। उन्होंने कई सेमिनार और वर्कशॉप के जरिए इस अभियान को बढ़ावा दिया।
गांव में खोला क्लीनिक, ताकि लड़कियां बता सकें अपनी परेशानी:
माया बताती हैं कि अभियान की शुरुआत में लोग पीरियड्स पर बात करने में बहुत झिझकते थे। उनके गांव में ही अधिकतर महिलाएं कपड़ा इस्तेमाल करती थीं। फिर धीरे-धीरे लोग उनसे जुड़ते गए। अपनी टीम के साथ मिलकर माया ने मेहरा गांव में एक क्लीनिक भी शुरू किया, ताकि महिलाएं और लड़कियां बिना हिचक अपनी परेशानी बता सकें। आज सुकर्मा फाउंडेशन से तकरीबन 50 लोग बतौर वालंटियर और कर्मचारी जुड़े हैं।
नो टेंशन सैनेटरी पैड की फैक्ट्री खोली:
माया ने शुरुआत में कुछ महिलाओं के साथ मिलकर घर पर ही सैनेटरी पैड बनाने शुरू किए। तब रोजाना 1000 पैड बनाए जाते। दो तरह के पैड बनाए जाते थे- पहला, रुई और लकड़ी के पल्प से और दूसरा, पॉलीमर शीट से। हालांकि, माया दूसरे गांव की महिलाओं को भी यह फायदा पहुंचाना चाहती थीं। उन्होंने क्राउड फंडिंग के जरिए पैसे जुटाए। एक छोटी फैक्ट्री यूनिट और पैड बनाने की मशीन खरीदी। इसके लिए उन्हें भारत के अलावा भी कई देशों से आर्थिक मदद मिली।
25 रुपए में मिलता हैं एक पैकेट:
इस मदद से माया ने नवंबर 2017 में नरसिंहपुर में ही एक छोटी फैक्ट्री यूनिट लगाई। अपने प्रोडक्ट को उन्होंने नो टेंशन नाम दिया। वह कहती हैं कि हमारे ब्रांड का नाम नो टेंशन इसलिए हैं, क्योंकि जब हमारे पास सैनेटरी पैड होता हैं तब हमें किसी बात की चिंता नहीं होती। नो टेंशन का एक पैकेट 25 रुपए का हैं, जिसमें 7 पैड मिलते हैं। ये बाजार में मिलने वाले बाकी कंपनियों के पैड से काफी सस्ते हैं।
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मेंस्ट्रुअल हाइजीन में सोच का अंतर ज्यादा:
माया कहती हैं कि मेंस्ट्रुअल हाइजीन के प्रति आज भी शहरों और गांवों में बहुत बड़ा अंतर हैं। गांवों में लड़कियों पर पीरियड्स पर चुप रहने का दबाव होता हैं। साथ ही, गांवों में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो सैनेटरी नैपकिन के इस्तेमाल की जरूरत को समझते हैं।
नवंबर, 2021 में जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 की रिपोर्ट के अनुसार देश में मध्य प्रदेश और मिजोरम ऐसे दो राज्य हैं, जहां शहरों और गांवों में मेंस्ट्रुअल हाइजीन गैप सबसे ज्यादा हैं। हालांकि, प्रदेश में सैनेटरी प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की संख्या में 61% की बढ़ोतरी हुई हैं।