देश में ओमिक्रॉन (Omicron) के बढ़ते मामलों के बीच भारत के टॉप हेल्थ एक्स्पर्ट्स ने कहा हैं कि नया वैरिएंट कोरोना की नेचुरल वैक्सीन (natural vaccine की तरह काम करता हैं। इसका कारण- मरीजों में माइल्ड या कोई लक्षण न होना हैं। ओमिक्रॉन से संक्रमित होने पर लोग गंभीर रूप से बीमार नहीं होते और वायरस के खिलाफ शरीर में एंटीबॉडीज बन जाती हैं। इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. गोवर्धन दास के मुताबिक, ओमिक्रॉन डेल्टा का ही माइल्ड रूप हैं। भले ही इस वैरिएंट में म्यूटेशन्स ज्यादा हैं, लेकिन ये बहुत ही कम लोगों को अस्पताल पहुंचा रहा हैं।
ओमिक्रॉन वैक्सीन की तरह असरदार:
आउटलुक मैगजीन से बात करते हुए जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और प्रख्यात इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. गोवर्धन दास ने बताया कि उन्हें विश्वास हैं कि ओमिक्रॉन कोरोना की नेचुरल वैक्सीन हैं। उनके अनुसार समय के साथ-साथ वायरस कमजोर हो गया हैं। आज वैज्ञानिक इसी तरह के वायरस का इस्तेमाल कर वैक्सीन का निर्माण करते हैं। इसमें वायरस के कमजोर रूप को लोगों में इंजेक्ट किया जाता हैं, जिससे उनके शरीर में एंटीबॉडी बनती हैं।
डॉ. दास के अनुसार ओमिक्रॉन के ढेर सारे म्यूटेशन इंसान के शरीर के लिए अच्छे हैं। वे मानते हैं कि हम जितना ज्यादा वायरस से लड़ेंगे, हमारा इम्यून सिस्टम कोरोना के खिलाफ उतना मजबूत होगा। डॉ. दास कहते हैं कि ओमिक्रॉन इस समय कोरोना के लिए उपलब्ध सबसे कारगर वैक्सीन हैं।
इसे भी पढ़े: ओमिक्रॉन: 4 राज्यों में पहुंचा नया वैरिएंट, महाराष्ट्र में 11 नए मरीज मिले
ओमिक्रॉन खतरनाक नहीं, फिर भी सतर्कता बरतना जरूरी:
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के वैज्ञानिक डॉ. एन.के. मेहरा के अनुसार, ओमिक्रॉन हमारे लिए वरदान साबित हो सकता हैं। हालांकि इस वैरिएंट से हर देश में एक जैसा संक्रमण होता हैं या नहीं, ये देखना अभी बाकी हैं। डॉ. मेहरा कहते हैं कि स्थिति चाहे जो भी हो, हमें कोरोना प्रोटोकॉल फॉलो करना जरूरी हैं। यह इसलिए क्योंकि यदि मरीजों की संख्या बढ़ती हैं, तो देश का हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर फिर मुसीबत में आ जाएगा।
ओमिक्रॉन की नेचुरल वैक्सीन गरीब देशों के लिए फायदेमंद:
मैक्स हेल्थकेयर के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ. संदीप बुधिराजा भी ओमिक्रॉन के नेचुरल वैक्सीन की तरह काम करने के तर्क से सहमत हैं। उनका कहना हैं कि ओमिक्रॉन का कमजोर होना उन गरीब देशों के लिए अच्छा हैं, जहां वैक्सीनेशन न के बराबर हो रहा हैं।
उनके मुताबिक, ये वैरिएंट कम लक्षणों के साथ ज्यादा लोगों को संक्रमित करेगा, जिससे आबादी का बड़ा हिस्सा वायरस के खिलाफ इम्यून हो जाएगा। डॉ. बुधिराजा का मानना हैं कि अभी अलग-अलग देशों के डेटा को एनालाइज करना जरूरी हैं।
नेचर के अनुकूल ढल रहा कोरोना वायरस:
पुणे के डीवाय पाटिल मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ. अमिताव बनर्जी के अनुसार वायरस नेचर में जीवित रहने के लिए उसके अनुकूल ढल जाते हैं। कोरोना वायरस के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा हैं। ये नए वैरिएंट के रूप में ज्यादा संक्रामक तो हैं, लेकिन नेचर के अनुकूल कमजोर भी हैं। डॉ. बनर्जी का कहना हैं कि जानलेवा वायरस एक व्यक्ति को संक्रमित कर उसी के साथ मर जाता हैं, मगर उसका माइल्ड वैरिएंट नेचर में जिंदा रहकर तेजी से फैलता हैं और लोगों की इम्यूनिटी बूस्ट करता हैं।