वोटिंग से 4 दिन पहले पंजाब का मूड: कांग्रेस की सीटें घटने और अकाली-BJP की बढ़ने के आसार, AAP के सामने सपोर्ट को वोट में बदलना चुनौती

BJP

अमृतसर: पंजाब में हफ्तेभर से मौसम बिल्कुल साफ हैं और पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर प्रचार के अंतिम चरण में सभी सियासी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी हैं। BJP ने प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 3 रैलियां रखी हैं। मोदी जालंधर में रैली कर चुके हैं और अगले 2 दिनों में उनकी 2 और रैलियां प्रस्तावित हैं। कांग्रेस में प्रचार की कमान कैप्टन अमरिंदर सिंह को CM की कुर्सी से उतारने वाले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने खुद अपने हाथों में ले रखी हैं।

आम आदमी पार्टी (AAP) की बात की जाए तो पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल खुद कई दिनों से पंजाब में ही कैंप किए हुए हैं और 18 फरवरी यानी चुनाव प्रचार बंद होने वाले दिन तक पंजाब में ही रहेंगे। जैसे-जैसे मतदान का दिन यानी 20 फरवरी नजदीक आ रही हैं, पंजाब की सियासी तस्वीर भी कुछ-कुछ साफ होने लगी हैं।

पंजाब में चुनाव प्रचार थमने से 3 दिन पहले के परिदृश्य में जो चीजें साफ नजर आ रही हैं, उनमें विधानसभा की 117 सीटों में से ज्यादातर पर त्रिकोणीय या आमने-सामने की नजर आ रही हैं। एक और बड़ी बात ये कि कांग्रेस पार्टी की सीटें घटने सकती हैं। कांग्रेस के पंजाब प्रधान नवजोत सिद्धू खुद अपनी सीट पर फंसे नजर आ रहे हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह इस चुनाव में अपनी ‘पंजाब लोक कांग्रेस’ पार्टी के लिए कोई खास कमाल दिखाते नजर नहीं आ रहे मगर BJP की सीटें जरूर बढ़ सकती हैं।

किसान संगठनों का संयुक्त समाज मोर्चा (SSM) भी दो-चार सीटों को छोड़ दे तो ज्यादातर जगह बस उपस्थिति मात्र दर्ज करवाता दिख रहा हैं। हां, ये जरूर है कि संयुक्त समाज मोर्चा की वजह से सबसे ज्यादा दिक्कत आम आदमी पार्टी (AAP) को हो रही हैं। AAP का पंजाब के ग्रामीण वोटरों पर असर साफ नजर आता हैं। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव की तरह ही इस बार भी वोटिंग वाले दिन इनमें से कितने लोग AAP के पक्ष में मतदान करते हैं, यह देखना बाकी हैं। अरविंद केजरीवाल और उनके रणनीतिकारों के सामने भी उत्साहित नजर आ रहे इन मतदाताओं को अपने पक्ष में मोड़ने की चुनौती हैं।

पंजाब में मतदान से 4 दिन पहले की स्थिति:

कांग्रेस को इसलिए नुकसान:

कांग्रेस को सिद्धू-चन्नी के बीच जारी कोल्ड वार और दूसरे नेताओं के आपसी विवाद या महत्वकांक्षाओं के कारण नुकसान होता दिख रहा हैं। कांग्रेसी नेताओं के पार्टी छोड़ने का सिलसिला भी जारी हैं। पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री अश्विनी कुमार, पंजाब महिला आयोग की चेयरपर्सन मनीषा गुलाटी, श्रीहरगोबिंदरपुर के MLA बलविंदर सिंह लाडी समेत कई बड़े चेहरे मतदान से कुछ दिन पहले पार्टी से किनारा कर गए। समराला के 4 बार के विधायक अमरीक सिंह ढिल्लों और नवांशहर के MLA अंगद सिंह टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।

कैप्टन काट रहे कांग्रेस के वोट:

कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी पारंपरिक सीट पटियाला अर्बन से आगे तो चल रहे हैं मगर इस बार उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही हैं। कैप्टन यहां जितना नुकसान कांग्रेस का कर रहे हैं, उसका सीधा फायदा AAP को मिल रहा हैं। AAP ने कैप्टन के सामने पटियाला नगर निगम के पूर्व मेयर अजीतपाल सिंह कोहली को उतारा हैं। कैप्टन जीत तो जाएंगे मगर उनका विनिंग मार्जिन पहले जैसा नहीं रहेगा। कैप्टन की पार्टी के बाकी उम्मीदवारों की बात करें तो उनमें से कोई जीतने की स्थिति में तो नहीं हैं, मगर लेकिन वह जो भी वोट लेंगे, उसका सीधा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ेगा।

AAP के लिए जीने-मरने का सवाल:

आम आदमी पार्टी ने पंजाब में इस बार पूरी ताकत लगा दी हैं और इसका फायदा भी उसे मिल रहा हैं। AAP का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट ये हैं कि शहरी इलाका हो या ग्रामीण एरिया, हर जगह उनका सपोर्टर मौजूद है जो बदलाव की बात करता हैं। चंडीगढ़ से लेकर अटारी बॉर्डर तक AAP ने पैठ बना ली हैं। पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस सपोर्ट को वोट में बदलने की हैं वरना 2017 जैसा ही कुछ हो सकता हैं। अरविंद केजरीवाल ने 2017 की गलती से सबक लेते हुए इस बार पहले ही पंजाब के भगवंत मान को अपनी पार्टी का CM चेहरा घोषित कर दिया हैं।

अकाली दल+BSP के पास खोने को कुछ नहीं:

अकाली दल इस चुनाव में भाजपा की जगह बहुजन समाज पार्टी (BSP) के साथ गठजोड़ करके मैदान में उतरा हैं और दोनों ही दलों के पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं हैं। पार्टी का प्रदर्शन 2017 में बेहद खराब रहा था और वह विपक्षी दल तक का दर्जा हासिल नहीं कर पाई। इस बार सुखबीर बादल की अगुआई में अकाली दल ठीक स्थिति में दिख रहा हैं। अकाली दल की मजबूती की एक वजह ये भी हैं कि उसका कॉडर कायम है। दूसरा- सुखबीर बादल की अगुवाई में पूरी पार्टी एकजुट होकर चुनाव लड़ रही हैं। सुखबीर बादल के सामने सबसे बड़ी चुनौती सिर्फ ये हैं कि गांवों में उनके पारंपरिक वोट बैंक में AAP सेंध लगाती दिख रही हैं।

BJP को दोहरी रणनीति से फायदा:

BJP की सीटें इस चुनाव में बढ़ेंगी। पंजाब में पहली बार बड़े भाई की भूमिका में चुनाव लड़ रही पार्टी शहरी सीटों पर अच्छा प्रदर्शन करेगी। 3 से 4 लेवल पर होने वाले वोट डिवीजन का फायदा भी पार्टी को मिलेगा। इस चुनाव में BJP शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ अपने सहयोगी कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींडसा की मदद से ग्रामीण क्षेत्रों में भी पैठ बनाने जा रही हैं।

PM नरेंद्र मोदी खुद सिख मतदाताओं को साधने में कसर नहीं छोड़ रहे। BJP के रणनीतिकार इस चुनाव को मौके की तरह देख रहे हैं और दोहरी रणनीति पर काम कर रहे हैं। पहली- अपनी पारंपरिक सीटों पर जीत हासिल की जाए। दूसरी- पार्टी जिन सीटों पर पहली बार लड़ रही हैं, वहां ज्यादा से ज्यादा वोटबैंक खड़ा किया जाए। इससे आने वाले समय में पार्टी को पंजाब में अपने पांवों पर खड़ी होने में मदद मिलेगी।

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