हरियाणा के रोहतक से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने संसद में अहीर रेजिमेंट Regiments के गठन की मांग उठाई हैं। उन्होंने अपने भाषण के जरिए अहीर समाज की वीरता का इतिहास सरकार के सामने रखा और कहा, “जब-जब देश पर आक्रमण हुआ, तब-तब जय यादव-जय माधव के नारे की गूंज के साथ अहीर भाइयों ने अपना बलिदान दिया। अब समय आ गया हैं कि भारतीय फौज में अहीर रेजिमेंट की स्थापना की जाए।”
इस मांग को उठाने वाले दीपेंद्र सिंह हुड्डा अकेले व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि लंबे समय से भारतीय सेना में अहीर रेजिमेंट बनाने की मांग उठती रही हैं। 2018 में इसी मांग को लेकर संयुक्त अहीर रेजिमेंट मोर्चा ने 9 दिनों तक भूख हड़ताल की थी। अब इस समुदाय का कहना हैं कि 4 साल बीतने के बाद भी उनकी मांग पूरी नहीं की गई हैं।
Regiments क्या हैं?
भारतीय सेना में रेजिमेंट एक ग्रुप होता हैं। कई रेजिमेंट के ग्रुपों से मिलकर भारतीय सेना बनती हैं। भारत में रेजिमेंट सबसे पहले अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बनीं। अंग्रेज अपने शुरुआती समय में समुद्री इलाकों तक ही सीमित थे। इसीलिए उन्होंने सबसे पहले मद्रास रेजिमेंट बनाई। फिर जैसे-जैसे अंग्रेजी शासन का विस्तार होता गया, नई रेजिमेंट बनती गईं।
जाति के नाम पर सेना में रेजिमेंट कैसे बनी?
भारतीय सेना में ज्यादातर व्यवस्थाएं अंग्रेजों के समय से चली आ रही हैं। हमारे पास जो सेना हैं, उस सेना में अधिकतर व्यवस्थाएं अंग्रेजों की देन हैं। ब्रिटिश अपनी सेना की एक छोटी सी टुकड़ी और अफसरों के साथ भारत आए थे।
इसके बाद उन्होंने ब्रिटिश सेना में भर्ती की शुरुआत की। जब उन्होंने समुद्री इलाकों से अपना विस्तार करना शुरू किया, तो सबसे पहले अंग्रेजों ने ऐसी जातियों को सेना में शामिल किया, जो जंग के मैदान में खूब बहादुरी से लड़ती थीं।
सिख साम्राज्य ने अंग्रेजों के खिलाफ तीन युद्ध लड़े, जिसमें अंग्रेजों ने सिखों की बहादुरी अपनी आंखों से देखी। इसके बाद अंग्रेजों ने 1846 में ब्रिटिश भारतीय सेना में सिख रेजिमेंट को बनाया। सिख रेजिमेंट में अधिकतर सिखों की भर्तियां हुईं।
पहले 3 राजपूत रेजिमेंट को 31 बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के नाम से बनाया गया था। इसके बाद इस रेजिमेंट के दूसरे कप्तान सैमुएल किलपैट्रिक के नाम पर बंगाल नेटिव को किलपैट्रिक की पलटन कहा जाने लगा। इस पलटन में यूपी-बिहार के राजपूत, ब्राह्मण और मुस्लिम शामिल हो सकते थे।
इस क्षेत्र से आने वाले ये समाज अपनी मजबूत कद-काठी, रौबदार व्यक्तिव के लिए जाने जाते थे। 1825 तक राजपूत रेजिमेंट 1, 2, 4 और 5 की भी स्थापना हो गई थी।
आजादी के बाद इसलिए नहीं बनीं जातीय रेजिमेंट:
यह सवाल कई बार उठाया गया कि आजादी के बाद सेना की जाति आधारित रेजिमेंट को भंग क्यों नहीं किया गया? और अगर सरकार जाति आधारित रेजिमेंट के खिलाफ नहीं हैं, तो आजादी के बाद कोई और जातीय रेजिमेंट क्यों नहीं बनाई गई?
दरअसल, भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ, जिसके बाद भारत को एक के बाद एक बड़े युद्ध लड़ने पड़े, जिसके कारण आजादी के तुरंत बाद सेना में बदलाव करना उचित नहीं था।
आजादी के बाद एम करियप्पा को भारतीय सेना का पहला कमांडर इन चीफ बनाया गया। उन्होंने पुरानी व्यवस्था के साथ सेना को नए भारत के लिए तैयार करने का भी काम किया। इसके लिए एम करियप्पा ने नेशनल कैडेट कोर को मजबूत किया, साथ ही टेरिटोरियल आर्मी का भी गठन किया।
हालांकि आजादी के बाद सबसे बड़ा सुधार ब्रिगेड ऑफ द ग्रार्डस मेकेनाइज्ड इन्फेंट्री को माना जाता हैं। इसमें किसी धर्म, जाति और समुदाय के आधार पर भर्तियां नहीं की जाती।
देश में आजादी के बाद सेना में भर्ती प्रक्रिया में सुधार करने के लिए 4 समितियां बनाई गईं, लेकिन आजादी के बाद किसी सरकार ने सेना में नई जातीय रेजिमेंट बनाने या भंग करने की बात नहीं कही।
अफसर रैंक पर जातिगत रेजिमेंट का क्या होता हैं असर?
जाति आधारित रेजिमेंट में एक जाति के लोगों के साथ कई जातियां एक रेजिमेंट में अपनी सेवाएं दे सकती हैं। हालांकि अफसर रैंक पर रेजिमेंट में भर्ती होने को लेकर कोई जातीय या धार्मिक पैमाना नहीं हैं।
जैसे राजपूताना राइफल्स में जाट और राजपूत समुदाय की संख्या लगभग बराबर ही रहती हैं। साथ ही राजपूत रेजिमेंट (जो राजपूताना राइफल्स से अलग रेजिमेंट हैं) में राजपूत, गुर्जर और मुस्लिम अपनी सेवाएं दे सकते हैं।
रेजिमेंट में चाहे एक जाति के लोग हों या मिक्स्ड, अफसर पद के लिए किसी भी व्यक्ति (धर्म, जाति या नस्ल से संबधित) को नियुक्त किया जा सकता हैं। इसके अलावा नियुक्ति होने के बाद अफसर को उसकी रेजिमेंट की सभी जातीय या धर्मिक परम्पराएं निभानी होती हैं।
मान लीजिए कोई मुस्लिम व्यक्ति जाट रेजिमेंट का कमांडिंग अफसर हो, तो वह जवानों के साथ मंदिर में परेड भी करेगा, यज्ञ में भी बैठेगा और विधि-विधान से उसे पूरा भी करवाएगा।
सेना में किस तरह होती हैं भर्ती?
सेना में भर्ती की भर्ती प्रक्रिया को समझने के लिए हमने डिफेंस एक्सपर्ट पीके सहगल से बात की। उन्होंने बताया कि इन्फेंट्री में भर्ती होने के लिए किसी भी समुदाय और जाति के लोग आवेदन कर सकते हैं। साथ ही अगर क्षेत्र की बात करें, तो सेना कहीं से भी जाकर सेना में लोगों की भर्ती कर सकती हैं।
उन्होंने कहा कि सैनिकों को पहले ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता हैं। उसके बाद उन्हें चॉइस दी जाती हैं, जिसमें वह बताते हैं कि वह किस रेजिमेंट या बटालियन में जाना चाहते हैं। हालांकि यह जरूरी नहीं कि सैनिक को उस की चॉइस से रेजिमेंट मिल ही जाए।