एक वक्त ऐसा आया जिसके बाद फिर Mulayam Singh ने पीछे मुड़कर नहीं देखा..

There came a time after which Mulayam Singh never looked back

नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) अपने कई महत्वपूर्ण फैसलों के लिए याद किए जाएंगे। उन्होंने भारतीय राजनीति को ना केवल नई दिशा दी बल्कि समाजिक परिवर्तन की इबारत भी लिखी। उन्होंने महिलाओं को सियासत में भागीदारी दिलाने के लिए निरंतर आवाज बुलंद किया।

यूपी के सैफई में किसान परिवार में जन्म लेने वाले मुलायम सिंह यादव अखाड़े में दाव लगाते-लगाते सियासी फलक पर छा गए। महज 15 साल की आयु में समाजवाद के शिखर पुरुष डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर नहर रेट आंदोलन में पहली बार जेल जाना पड़ा। वह केके कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। आगरा विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर करने के बाद इंटर कॉलेज में प्रवक्ता बने, उसके बाद त्यागपत्र दिया और गुरु चौधरी नत्थूसिंह की परंपरागत विधानसभा सीट जसवंत नगर से 1967 में पहली बार विधायक बने। इसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने अपने जीवन में कई ऐसे फैसले लिए, जिसकी वजह से उनके ना रहने पर भी लोग याद करेंगे। अपने राजनीतिक सफर में पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों के हित की अगुवाई कर अपनी पुख्ता राजनीतिक जमीन तैयार की। उन्होंने अपने जिंदगी में कई ऐतिहासिक फैसले भी लिए, जिसके लिए वह हमेशा याद किए जाएंगे।

ऐसे हुआ समाजवादी की स्थापना

There came a time after which Mulayam Singh never looked back

लोकदल से वांया जनता दल होते हुए मुलायम सिंह यादव ने साल 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की। पिछड़ी जातियों को गोलबंद करते हुए अल्पसंख्यकों को साथ लिया। अगलों को उनकी हिस्सेदारी के आधार पर भागीदारी देते हुए आगे बढ़े। तीन बार मुख्यमंत्री बनने के बाद वर्ष 2012 में अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया।

देश की एकता के लिए कारसेवकों पर गोलियां चलवानी पड़ी

साल 1989 में मुलायम सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। अयोध्या में मंदिर आंदोलन तेज हुआ तो कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया। इसके बाद उन्हें मौलाना मुलायम तक कहा गया पर उन्होंने इसकी परवाह कभी नहीं की। अपने 79वें जन्मदिन पर मुलायम सिंह यादव ने कहा कि सीएम रहते देश की एकता के लिए कारसेवकों पर गोलियां चलवाईं। अगर वह अयोध्या में मस्जिद नहीं बचाते तो ठीक नहीं होता क्योंकि उस दौर में कई नौजवानों ने हथियार उठा लिए थे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री काल में देश की एकता के लिए कारसेवकों पर गोलियां चलवानी पड़ी।

यूपीए सरकार को समर्थन देकर चौंकाया

साल 2008 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार अमरीका के साथ परमाणु करार को लेकर संकट में आ गई। उस वक्त यूपीए में शामिल वामपंथी दलों ने समर्थन वापस ले लिया। ऐसे समय में मुलायम सिंह यादव ने बाहर से समर्थन देकर मनमोहन सरकार को गिरने से बचा लिया। उनके इस फैसले की जमकर आलोचना भी हुई लेकिन उन्होंने कोई परवाह नहीं की।

जब अखिलेश को सौंपी अपनी विरासत

There came a time after which Mulayam Singh never looked back

राजनीति के कुशल खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 2012 में पूण बहुमत मिलते ही अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। वर्ष 2017 में पार्टी के अंदर खलमंडल मचा। वह कभी शिवपाल और कभी अखिलेश के पक्ष में खड़े होते रहे। आखिरकार उन्होंने सार्वजनिक मंच से स्वीकार किया कि वह अखिलेश यादव के साथ हैं। अखिलेश यादव ही समाजवादी विरासत को आगे बढ़ा सकते हैं।

मुलायम सिंह यादव ने अपने कार्यकाल के दौरान जितने कड़क फैसले लिए, वह उतने ही दिल के मुलायम रहे। उन्होंने अपने घनघोर विरोधियों को भी मौका पड़ने पर गले लगाने से नहीं चूके। पेश हैं मुलायम के मुलायम होने से जुड़ी कुछ खास घटनाएं-

मुलायम सिंह के खास अमर सिहं

Mulayam And Amar Singh F

मुलायम सिंह ने कारोबारी अमर सिंह को गले लगाया और महासचिव पद सौंप दिया था। चंद दिनों में ही अमर सिंह की हालत पार्टी में नंबर दो की हो गई। लेकिन साल 2010 में अमर सिंह को समाजवादी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अमर सिंह ने कई गंभीर आरोप लगाए, लेकिन मुलायम ने इन आरोपों को मुस्कुरा कर टाल दिया।

मुलायम सिंह के अजीज दोस्त आजम खान

Azam Khan with Mulayam

समाजवादी पार्टी के गठन में मुलायम सिंह के अजीज दोस्त आजम खान से उनके रिश्ते बनते -बिगड़ते रहे हैं। कभी अमर सिंह तो कभी कल्याण सिंह की वजह से आजम खां असहज हुए। 27 वर्ष साथ-साथ रहने के बाद साल 2009 में आजम खान ने एसपी का साथ छोड़ दिया। इसके पीछे मूल वजह अमर सिंह को माना गया। आजम खां ने कभी खुलकर मुलायम सिंह के खिलाफ नहीं बोला। इतना जरूर है कि उन्होंने एक बार शेर पढ़ा कि-
इस सादगी पर कौन न मर जाए ऐ खुदा, करते हैं कत्ल और हाथ में तलवार नहीं। फिर 04 दिसंबर, 2010 को आजम खान की घर वापसी हुई। दोनों मिले तो आंखों में आंसू छलक पड़े।

कल्याण सिंह– प्रदेश की सियासत में एक साथ सफर शुरू करने वाले मुलायम सिंह को 06 दिसंबर, 1992 को मौलाना मुलायम तो कल्याण सिंह को हिंदू सम्राट की उपाधि मिली। बीजेपी से रिश्ते खराब होने के बाद कल्याण सिंह ने अलग पार्टी बनाई। वर्ष 2009 से ठीक पहले मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह मिले। आगरा में राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में एक साथ मंच साझा किया। पर चुनाव में एसपी को झटका लगा और फिर दोनों की राहें अलग हो गईं।

बेनी प्रसाद वर्मा- समाजपादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे बेनी प्रसाद मौर्य साल 2008 में बेटे को टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर नई पार्टी बनाई और फिर साल 2008 में कांग्रेस में शामिल हो गए। वर्मा ने मुलायम सिंह के खिलाफ बयान दिया कि मुलायम प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, लेकिन उनकी औकात प्रधानमंत्री कार्यालय में झाड़ूलगाने तक की नहीं है। इसके बाद भी मुलायम सिंह ने कभी भी बेनी प्रसाद के लिए बयान नहीं दिया। हालात बदले और बेनी प्रसाद एसपी में वापस आए तो उन्हें सपा ने 2016 में राज्यसभा भेजा।

जब कांशीराम के बाद एक मंच पर साथ आए मायावती-मुलायम

Mulayam and Kashiram

सियासी जानकार बताते हैं कि वर्ष 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम आपस में मिले तो बीजेपी का विजय रथ रोकने में कामयाबी मिली थी। लेकिन मायावती और मुलायम के बीच 23 मई, 1995 को दूरियां साफ दिखी, क्योंकि इस दिन जब मुलायम सिंह कांशी राम से मिलने पहुंचे तो कांशीराम ने कहा कि बात पत्रकारों के सामने होगी। एक जून को मायावती ने मुलायम सरकार में शामिल अपने 11 मंत्रियों के साथ दावा पेश कर दिया। इसके बाद दोनों की राहें जुदा हो गईं।

Mulayam and Mayawati

इसके बाद 15 मार्च, 2018 को अखिलेश यादव ने मायावती से मुलाकात कर दोबारा गठबंधन कायम किया। फिर 24 साल बाद 19 अप्रैल, 2019 को मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव और मायावती एक मंच पर दिखे। इस दिन सपा- बसपा की एका में नारे लगे। हमेशा 1995 में गेस्ट हाउस कांड की दुहाई देने वाली मायावती ने इस दिन रैली में न सिफ़ॱर मुलायम सिंह के लिए वोट मांगा बल्कि उनकी तारीफ़ भी की और गेस्ट हाउस जैसा कांड भूलने की वजह भी बताई। कहा कि मुलायम सिंह यादव पिछड़े वर्ग के असली नेता हैं।

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जानें कब-कब रहें यूपी के मुख्यमंत्री

  1. वह तीन बार मुख्यमंत्री रहे। पहली बार पांच दिसंबर 1989 से 24 जून 1991 तक, दूसरी बार पांच दिसंबर 1993 से 3 जून 1995 तक और तीसरी बार 29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 तक मुख्यमंत्री रहे।
  2. वह एक जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे।
  3. पहली बार 1967 में विधायक बने। फिर साल 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 में विधायक बने। फिर उपचुनाव में साल 2004 से 2007 तक विधायक रहे।
  4. लोकसभा सदस्य के रूप में साल 1996 में मैनपुरी, 1998 में संभल, 1999 में संभल से रहे। 2004 में मैनपुरी से चुने गए लेकिन इस्तीफा दे दिया। फिर साल 2009 में मैनपुरी, 2014 में आजमगढ़ औ 2019 में मैनपुरी से सांसद चुने गए।
  5. वर्ष 1992 में एसपी का गठन किया और खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। वह जनवरी साल 2017 तक इस पद पर रहे। इसके बाद इन्हें संरक्षक बना दिया।

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