क्रूज़ रेव पार्टी मामले में आर्यन खान को जमानत मिल चुकी है, जिस तरह से एनसीबी ने 700 लोगों के बीच से जो क्रूज़ पर रेव पार्टी में शामिल थे ‘सॉफ्ट टारगेट’ को पिकअप किया है उससे एनसीबी के कार्य प्रणाली पर सवाल खड़ा होना लाज़िमी है, एनसीबी मुंबई के क्षेत्रीय निदेशक समीर वानखेड़े अब इसे लेकर सवालों और जांच के घेरे में है। अब बात करते हैं अंडर ट्रायल या विचारधीन क़ैदियों की, आर्यन खान और उनके दोस्त तो हाई प्रोफाइल विचारधीन क़ैदी थे, लेकिन भारत के जेलों (Jail) में 70 फीसदी क़ैदी अंडर ट्रायल है, भारतीय जेलों में भीड़भाड़, कर्मचारियों की कमी, का एनसीआरबी की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है; जेलों में अधिकांश कैदी विचाराधीन कैदी हैं, उनमें से 70 फीसदी से अधिक ने कक्षा 10 तक पढ़ाई नहीं की है। रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 के अंत में भारत में कुल कैदियों में से 68.5 प्रतिशत विचाराधीन कैदी थे और 30.9 प्रतिशत अपराधी थे।
जेल के आंकड़ों पर 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अधिकांश कैदी ऐसे लोग हैं जिन्हें अभी तक किसी अदालत ने दोषी नहीं ठहराया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 के अंत तक भारत में कुल कैदियों में से 68.5 फीसदी विचाराधीन कैदी थे। डेटा यह भी बताता है कि आपराधिक न्याय प्रणाली में समाज के हाशिए पर रहने वाले लोगों को कैद करने की अधिक संभावना है। जम्मू और कश्मीर में जेल में बंद सभी लोगों में से आठ फीसदी वो क़ैदी हैं जिन्हें एहतियात के तौर पर हिरासत में लिया गया था, यह आंकड़ा भारत के सभी राज्यों के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने हाल ही में जारी जेल के जो आंकड़े साल 2017 मध्य में जारी किये है उनके मुताबिक़ भारत में ज़्यादातर कैदी ऐसे लोग हैं जिन्हें अभी तक अदालत द्वारा दोषी नहीं ठहराया गया है। रिपोर्ट के अनुसार 2017 के अंत में, भारत में कुल कैदियों में से 68.5 प्रतिशत विचाराधीन कैदी थे, 30.9 प्रतिशत अपराधी थे, 0.5 प्रतिशत बंद थे और 0.2 प्रतिशत अन्य कैदी थे। यह मोटे तौर पर 2016 के समान है, हालांकि, 2017 में विचाराधीन कैदियों की संख्या में 0.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि दोषियों की संख्या में 0.4 प्रतिशत की गिरावट आई। राज्यों में, विचाराधीन कैदियों का उच्चतम प्रतिशत मेघालय (88.4 प्रतिशत) में था जबकि सबसे कम मिजोरम (52.9 प्रतिशत) में था। केंद्र शासित प्रदेशों में, विचाराधीन कैदियों का उच्चतम प्रतिशत दादरा और नगर हवेली (100 प्रतिशत) में था जबकि सबसे कम अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (48.3 प्रतिशत) में था।
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चिंताजनक रूप से, एक चौथाई (25.1 प्रतिशत) से अधिक विचाराधीन कैदी एक वर्ष से अधिक समय से सलाखों के पीछे थे। राष्ट्रव्यापी, पांच साल से अधिक समय तक जेल में बिताने वाले विचाराधीन कैदियों का प्रतिशत 1.6 फीसदी है। हालांकि, इस मामले में दो राज्य अलग हैं-जम्मू-कश्मीर (10.5 फीसदी) और गुजरात (8.2 फीसदी)। जहां तक बंदियों का सवाल है, जबकि राष्ट्रीय औसत एक छोटा आंकड़ा है, 0.5 प्रतिशत, एक राज्य थोड़ा अलग है। वह राज्य है- अनुमान लगाने के लिए कोई पुरस्कार नहीं- जम्मू और कश्मीर, जहां 8 प्रतिशत लोग बंद थे। निवारक निरोध तब होता है जब किसी व्यक्ति को पहले से हो चुके कथित अपराध के बजाय निकट भविष्य में अपराध करने से रोकने के लिए उसे हिरासत में रखा जाता है।
अंडर ट्रायल में सबसे ज़्यादा भुक्तभोगी क़ैदी है, गरीब और समाज के हाशिए पर खड़े लोग। इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है कि बेल के लिए पैसे का इंतज़ाम कहां से करें, बेल के बदले जेल की चक्की में गरीब सबसे ज़्यादा पिस्ता है, यही कारण है कि जेल में जो 70 प्रतिशत विचारधीन क़ैदी हैं उनमें ज़्यादातर गरीब ही है, ऊपर से सितम ये है कि अदालत में इन्हे कोर्ट के दलाल पेशेवर जमानतदार इन्हें लूट लेते है, इन गरीब क़ैदियों में ज़्यादातर पढ़ें-लिखे भी नहीं होते, अभियुक्तों के परिजन ज़मीन, पशुधन, सूदख़ोर से पैसे लेकर ज़मानत करने को अभिशप्त है, ये पैसे के बदले बेल बड़ी ही निराली व्यवस्था है, ज़रूरत है इसमें क़ानूनी बदलाव लाने की, जिन अभियुक्तों पर गंभीर धाराएं नहीं है, उन्हें तो कुछ सख्त शर्तो के साथ ज़मानत दे देनी चाहिए, इससे जेल का भार और खर्च भी काम होगा, सरकार पर भी आर्थिक बोझ कम पड़ेगा। बचत के उन पैसों का इस्तेमाल जेल की हालत सुधारने में भी हो सकता है, जिनकी हालत छोटे शहर के जेलों की तो बहुत ही दयनीयें है, मानवीय पहलु को ध्यान में रख कर ही ऐसे सुधर किये जा सकते है, जहां सरकार एक से एक ‘क्रन्तिकारी’ क़दम उठा रही है, वहीं बेल से लेकर जेल की व्यवस्था में भी सुधार कर न्यायिक प्रणाली की कमज़ोरियों को भी दूर करें, इससे ना सिर्फ समाज का भला होगा बल्कि दूरगामी नतीजे भी देखने को मिलेंगे।
Syed Ruman Shamim Hashmi
(Editor in chief)
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