पांच दिन के दिवाली उत्सव के द्वितीय दिवस यानी धनतेरस के अगले दिन और दिवाली के एक दिन पूर्व नरक चतुर्दशी पड़ती है। दिवाली के एक दिन पूर्व होने की वजह से जन समान्य में यह छोटी दिवाली के नाम से भी प्रचलित है। कथानुसार इसी दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस दिन दीयों की बारात सजा कर खुशियां मनाई गई।
उपर्युक्त संदर्भ में एक अन्य कथा यह भी प्रचलित है कि रन्ति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके सामने यमदूत आ खड़े हुए। यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है। यमदूत ने कहा हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण लौट गया यह उसी पाप का फल है।
दूत की इस प्रकार कहने पर राजा ने यमदूत से कहा कि मैं आपसे विनती करता हूं कि मुझे वर्ष का समय दे दे। यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचा और उन्हें सब वृतान्त कहकर उनसे पूछा कि कृपया इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय बताएं। ऋषि बोले हे राजन् आप कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनसे उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें।राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें स्वर्ग में स्थान प्राप्त हुआ।
चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान, जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है, सबसे महत्वपूर्ण है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस दिन अभ्यंग स्नान करते हैं, वे नरक में जाने से बच सकते हैं। अभ्यंग स्नान के दौरान उबटन के लिए तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए। अभ्यंग स्नान हमेशा चंद्रोदय के दौरान किया जाता है लेकिन सूर्योदय से पहले जबकि चतुर्दशी तिथि प्रचलित है।
नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी और रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है।