नई दिल्ली: गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान महिला को स्वस्थ रहने के लिए कई प्रकार के पोषक तत्व, विटामिंस और खनिज पदार्थ आवश्यक होते हैं। इन्हीं में से एक हैं Vitamin D। महिलाएं गर्भावस्था के समय विटामिन-ए, सी युक्त खाद्यों का सेवन तो करती हैं, लेकिन विटामिन-डी को नज़रअंदाज़ कर देती हैं। विटामिन-डी रक्त में फॉस्फोरस और कैल्शियम की मात्रा को संतुलित रखता हैं। यह कैल्शियम और फॉस्फोरस को अवशोषित भी करता हैं। साथ ही रक्त में शुगर लेवल, ब्लड प्रेशर को भी नियंत्रित करता हैं।
कमी के कारण
गर्भावस्था के दिनों में महिलाओं द्वारा घर से बाहर कम निकलने, धूप में न बैठने, विटामिन-डी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन न करने, सनस्क्रीन का अधिक इस्तेमाल करने व त्वचा को हमेशा ढककर रखने की आदत की वजह से शरीर में विटामिन-डी की कमी हो जाती हैं।
क्या हैं लक्षण
गर्भवती महिलाओं में हड्डियों में दर्द, जोड़ों में दर्द व सूजन, मांसपेशियों में थकान व दर्द की समस्या, शरीर में थकान का अहसास, नसों में सूजन, बालों का झड़ना और मूड में बदलाव जैसे लक्षण विटामिन-डी की कमी का संकेत देते हैं।
जोखिम भी जानें
इसकी कमी से गर्भवती महिलाओं में हड्डियों में दर्द या कमज़ोरी आना, ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव होना, जेस्टेशनल डायबिटीज़, गर्भपात, प्रीटर्म लेबर (समय से पहले बच्चे का जन्म होना) जैसे जोखिम बढ़ सकते हैं।
विटामिन-डी की कमी से गर्भावस्था में अचानक हाई ब्लड प्रेशर की समस्या और पेशाब में प्रोटीन आने जैसी स्थिति भी बन सकती हैं। इससे पैरों व हाथों में सूजन आ सकती हैं। इसे प्री-एक्लेम्पसिया कहा जाता हैं और कई महिलाओं में यह समस्या गर्भधारण के 20 हफ्ते (5 महीने) बाद दिखना शुरू होती हैं। इससे बच्चे को भी नुकसान हो सकता हैं व सिजेरियन डिलीवरी का जोखिम बढ़ जाता हैं।
हड्डियों में कमज़ोरी और डायबिटीज़ का खतरा स्तनपान कराने वाली मां में भी हो सकता हैं। साथ ही बच्चे पर भी प्रभाव पड़ सकता हैं जैसे भ्रूण का सही तरीक़े से विकास न होना, जन्म के समय बच्चे का वज़न कम होना, नवजात में रिकेट्स या सूखा रोग (हड्डियों में दर्द, हड्डियों का कमज़ोर होना या नरम पड़ना जिससे बच्चों में बो लेग डीफोर्मिटी और नोक नी डीफोर्मिटी होना) की समस्या, बच्चे में कैल्शियम की कमी होना, मधुमेह, प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर होना और तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) से जुड़ी समस्याएं आना आदि।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, जिन बच्चों का जन्म के समय वज़न 2500 ग्राम से कम होता हैं, उन्हें लो बर्थवेट की श्रेणी में रखा जाता हैं। इसलिए बच्चे के सही वज़न और विकास के लिए विटामिन-डी की पर्याप्त मात्रा लेना बेहद ज़रूरी हैं।
विटामिन-डी अधिक लेने के नुक़सान
गर्भावस्था के दिनों में रोज़ाना 200-500 इंटरनेशनल यूनिट्स विटामिन-डी लेना चाहिए। इसकी अधिकता से शरीर में हाइपरविटामिनोसिस-डी की समस्या हो सकती हैं। अधिक विटामिन-डी रक्त के माध्यम से हृदय व किडनी पर प्रभाव डालता हैं।
विटामिन-डी की मात्रा अधिक होने की वजह से भ्रूण की हड्डियों में कैल्शियम कम होने लगता हैं। इसके अलावा हाइपरकैल्सीमिया मतलब शरीर में कैल्शियम की मात्रा में वृद्धि हो सकती हैं और हाइपरकैल्शियूरिया मतलब यूरिन में भी कैल्शियम की मात्रा ज़्यादा हो सकती हैं।
इसलिए डॉक्टर की सलाह अनुसार ही विटामिन-डी का सेवन करें।
उपाय
दूध या दूध से निर्मित खाद्य पदार्थ जैसे पनीर, दही, लस्सी आदि का सेवन करें। इनमें विटामिन-डी भरपूर मात्रा में होता हैं।
अंडे का सेवन भी शरीर के लिए लाभदायक हैं। अंडे के पीले भाग (ज़र्दी) में विटामिन-डी होता हैं। अंडे उबालकर या ऑमलेट बनाकर भी आहार के रूप में ले सकते हैं।
फैटी फिश के सेवन से भी पर्याप्त मात्रा में विटामिन-डी प्राप्त होता हैं। यहां सैल्मन, मैकेरल और सार्डिन फिश का सेवन कर सकते हैं।
विटामिन-डी की कमी को पूरा करने के लिए मशरूम का सेवन कर सकते हैं। सलाद या सब्ज़ी के रूप में ले सकते हैं।
सुबह के समय धूप ज़रूर लें, क्योंकि सूर्य की धूप प्राकृतिक विटामिन-डी के निर्माण का सबसे अच्छा स्रोत हैं। रोज़ाना 10-15 मिनट धूप लें।
डॉक्टर की देखरेख में विटामिन-डी सप्लीमेंट, इंजेक्शन, दैनिक या सप्ताहिक दवाइयां भी ली जा सकती हैं।