नई दिल्ली: कोरोना वायरस का नया वैरिएंट ओमिक्रॉन देशभर के कई राज्यों में दस्तक दे चुका हैं। इसके कई मामले दिन-पर-दिन सामने आ रहे हैं जो कि बेहद चिंताजनक हैं। कोरोना वैरिएंट के बारे में पता लगाने के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता हैं। इस तकनीक का नाम आप पिछले कई दिनों से सुन रहे होंगे, लेकिन जीनोम सिक्वेंसिंग आखिर है क्या,कैसे पता चलता है कि आपके सैंपल में वैरिएंट ओमिक्रॉन पाया गया है या नहीं?
आईएलबीएस के वाइस चांसलर डॉक्टर एसके सरीन बताते हैं, मानव शरीर जैसे डीएनए से मिलकर बनता हैं। वैसे ही वायरस भी या तो डीएनए या फिर आरएनए से बनता हैं। कोरोना वायरस आरएनए से बना हैं। जीनोम सीक्वेंसिंग वह तकनीक हैं। आरएनए की जेनेटिक जानकारी मिलती हैं। आसान भाषा में कहें तो वायरस कैसा हैं, कैसे हमला करता हैं और कैसे बढ़ता हैं। ये जानने में जीनोम सीक्वेंस ही काम आता हैं।
आरएनए प्रोसेसिंग की प्रक्रिया
सबसे पहले आपके RT-PCR सैंपल को bsl3 लैब में लाया जाता हैं। वहां पर उस सैंपल में से आरएनए को अलग किया जाता हैं। इसके बाद जीनोम सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया होती हैं। इसीलिए आरएनए को उस सैंपल वायरस से अलग करना बेहद जरूरी हैं। आरएनए अलग करने के बाद इसे -80 डिग्री के टेंपरेचर पर रखा जाता हैं। इसके बाद सीधे जिनोम सीक्वेंसिंग लैब में लाया जाता हैं। जहां पर आरएनए प्रोसेसिंग की प्रक्रिया शुरू होती हैं।
आरएनए को डीएनए में करते हैं तब्दील
लैब के डॉक्टर प्रमोद बताते हैं कि आरएनए प्रोसेसिंग की प्रक्रिया में आरएनए को डीएनए में तब्दील किया जाता हैं। ऐसा इसलिए किया जाता हैं क्योंकि आरएनए बहुत जल्दी रिएक्ट कर जाता हैं जिसके कारण उस पर किसी भी तरह का टेस्ट करना मुमकिन नहीं हैं।इसलिए इसे डीएनए में कन्वर्ट किया जाता हैं। डीएनए में कन्वर्ट करने के लिए इसे एक न्यूनतम तापमान पर एक पीसीआर मशीन में डाला जाता हैं। जब डीएनए, आरएनए में कन्वर्ट हो जाता है तब इसे फ्रेगमेंटेशन के लिए भेजते हैं।
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एनालाइजर मशीन से चलता हैं पता
इंडेक्शन के बाद इसे सीक्वेंसिंग के लिए एनालाइजर मशीन में डाला जाता हैं। एनालाइजर मशीन में यह पता चलता हैं कि सैंपल की मात्रा और उसकी गुणवत्ता सही हैं या नहीं। यदि यहां सब सही हुआ तो ग्राफ के जरिए यह पता लगता हैं कि सैंपल को आगे की प्रक्रिया के लिए भेजा जा सकता हैं।
केमिकल्स से होती है सीक्वेंसिंग
एनालाइज करने के बाद इस अप्रूव्ड सैंपल को एक मशीन में डाला जाता हैं। जहां पर कई सारे केमिकल्स के साथ इसे मिक्स किया जाता हैं। इसी मशीन में पूरी सीक्वेंसिंग की प्रक्रिया होती हैं। सीक्वेंसिंग की मशीन को डाटा एनालाइजर मशीन पर डाला जाता हैं, जिससे पता लग सके कि सैंपल में कौन-सा वैरिएंट पाया गया हैं।
वायरस में म्यूटेशन बताती है डाटा एनालाइजर मशीन
डाटा एनालाइजर मशीन में जीनोम में होने वाले बदलाव के बारे में पता चलता हैं। यह बदलाव पुराने वायरस से कितना अलग है? यह भी बतलाता हैं। सीक्वेंसिंग की मदद से डॉक्टर्स समझ पाते हैं कि वायरस में म्यूटेशन कहां पर हुआ? अगर म्यूटेशन कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन में हुआ हो, तो ये ज्यादा संक्रामक होता हैं। इस पूरी प्रक्रिया में करीब एक हफ्ते का समय तो लगता ही हैं।