SC: नोटबंदी पर पांच जजों में जस्टिस नागरत्ना ने सिर्फ उठाए सरकार के फैसले पर सवाल

Among the five judges on note ban, Justice Nagaratna only raised questions on the government's decision.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (SC) के पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार के साल 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा है। जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने 4:1 के बहुमत से नोटबंदी के पक्ष में फैसला सुनाया। फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी से पहले केंद्र और RBI के बीच सलाह-मशविरा हुआ था। इस तरह के उपाय को लाने के लिए दोनों पक्षों में बातचीत हुई थी इसलिए हम मानते हैं कि नोटबंदी आनुपातिकता के सिद्धांत से प्रभावित नहीं हुई थी। हालांकि, 05 जजों में एक जज न्यायमूर्ति नागरत्ना ने नोटबंदी के फैसले को गैरकानूनी ठहराया। उन्होंने आरबीआई को सीमा लांघने तक की बात कह डाली।

न्यायूर्ति नागरत्ना ने उठाए RBI पर सवाल

वहीं, नोटबंदी के फैसले के मद्देनजर न्यायमूर्ति नागरत्ना ने आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत अलग राय रखी। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि मैं साथी जजों से सहमत हूं पर मेरे तर्क अलग हैं। मैंने सभी छह सवालों के अलग जवाब दिए हैं। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव केंद्र सरकार की तरफ से आया था और आरबीआई की राय मांगी गई थी। आरबीआई द्वारा दी गई ऐसी राय को आरबीआई अधिनियम की धारा 26(2) के तहत ‘सिफारिश’ के रूप में नहीं माना जा सकता है। यह मान भी लिया जाए कि आरबीआई के पास ऐसी शक्ति थी लेकिन ऐसी सिफारिश आप नहीं कर सकते क्योंकि धारा 26 (2) के तहत शक्ति केवल करेंसी नोटों की एक विशेष श्रृंखला के लिए हो सकती है और किसी मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों की पूरी श्रृंखला के लिए नहीं। उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26(2) के तहत कोई भी ‘श्रृंखला’ का अर्थ ‘सभी श्रृंखला’ नहीं हो सकता है।

‘नोटबंदी की कार्रवाई गैरकानूनी’

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई नोटबंदी की कार्रवाई गैरकानूनी है लेकिन इस समय यथास्थिति बहाल नहीं की जा सकती है। अब क्या राहत दी जा सकती है? राहत को ढालने की जरूरत है।

नोटबंदी प्रभावी नहीं हो सकी

नोटबंदी से जुड़ी समस्याओं से एक आश्चर्य होता है कि क्या सेंट्रल बैंक ने इनकी कल्पना की थी? यह रिकॉर्ड पर लाया गया है कि 98 फीसदी बैंक नोटों की अदला-बदली की गई। इससे पता चलता है कि उपाय खुद प्रभावी नहीं था जैसा कि होने की मांग की गई थी। लेकिन अदालत इस तरह के विचार के आधार पर अपने फैसले को आधार नहीं बना सकती है। उन्होंने कहा कि 500 रुपये और 1,000 रुपये के सभी नोटों का विमुद्रीकरण गैरकानूनी और गलत है। हालांकि, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अधिसूचना पर कार्रवाई की गई है, कानून की यह घोषणा केवल भावी प्रभाव से कार्य करेगी और पहले से की गई कार्रवाइयों को प्रभावित नहीं करेगी।

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