नई दिल्ली: रक्षामंत्री और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह ने वीर सावरकर (Savarkar) को लेकर बड़ा बयान दिया है। राजनाथ सिंह ने कहा है कि विचारधारा के चश्मे से देखकर वीर सावरकर के योगदान की उपेक्षा करना और उन्हें अपमानित करना क्षमा योग्य और न्यायसंगत नहीं है। राजनाथ सिंह ने दावा किया कि सावरकर ने महात्मा गांधी के कहने पर अंग्रेजों को दया याचिका दी थी।
राजनाथ सिंह ने उदय माहूरकर और चिरायु पंडित की पुस्तक ‘वीर सावरकर हु कुड हैव प्रीवेंटेड पार्टिशन’ के विमोचन कार्यक्रम में यह बात कही। इसमें सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी हिस्सा लिया। राजनाथ सिंह ने कहा कि एक खास विचारधारा से प्रभावित तबका वीर सावरकर के जीवन और विचारधारा से अपरिचित है और उन्हें इसकी सही समझ नहीं है, वे सवाल उठाते रहे हैं।
‘विचारधारा के चश्मे से देखकर उनके योगदान की अनदेखी करना गलत’
राजनाथ सिंह ने कहा- हमारे राष्ट्र नायकों के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में वाद-प्रतिवाद हो सकते हैं पर उन्हें हेय दृष्टि से देखना किसी भी तरह से उचित और न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता है। वीर सावरकर महान स्वतंत्रता सेनानी थे, ऐसे में विचारधारा के चश्मे से देखकर उनके योगदान की अनदेखी करना और उनका अपमान करना क्षमा योग्य नहीं है।
राजनाथ सिंह ने आगे कहा कि वीर सावरकर महानायक थे, महानायक हैं और भविष्य में भी रहेंगे। देश को आजाद कराने की उनकी इच्छा श्कति कितनी मजबूत थी। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने उन्हें दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनवाई, कुछ विशेष विचारधारा से प्रभावित लोग ऐसे राष्ट्रवादी पर सवालिया निशान लगाने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा- कुछ लोग उन पर नाजीवादी, फासीवादी होने का आरोप लगाते हैं पर सच यह है कि ऐसा आरोप लगाने वाले लोग लेनिनवादी, मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित थे और अभी भी हैं।
स्वस्थ लोकतंत्र की बात करते थे सावरकर- राजनाथ सिंह
राजनाथ सिंह ने कहा कि स्पष्ट शब्दों में कहें तो सावरकर यथार्थवादी और राष्ट्रवादी थे जो बोल्शेविक क्रांति के साथ स्वस्थ लोकतंत्र की बात करते थे। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व को लेकर सावरकर की एक सोच थी जो भारत की भौगोलिक स्थिति और संस्कृति से जुड़ी थी। उनके लिए हिंदू वर्ड किसी धर्म, पंथ से जुड़ा नहीं था बल्कि भारत की भौगोलिक और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा था।
राजनाथ सिंह ने कहा कि सीधे शब्दों में कहें तो सावरकर ‘यथार्थवादी’ और ‘राष्ट्रवादी’ थे जो बोल्शेविक क्रांति के साथ स्वस्थ लोकतंत्र की बात करते थे. उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व को लेकर सावरकर की एक सोच थी जो भारत की भौगोलिक स्थिति और संस्कृति से जुड़ी थी. उनके लिये हिन्दू शब्द किसी धर्म, पंथ या मजहब से जुड़ा नहीं था बल्कि भारत की भौगोलिक और सांस्कृतिक पहचान से जुड़ा था। उन्होंने आगे कहा कि इस सोच पर किसी को आपत्ति हो सकती है लेकिन इस विचार के आधार पर नफरत करना ठीक नहीं। उन्होंने अंग्रेजों के सामने दया याचिका के बारे में एक खास वर्ग के लोगों के बयानों को गलत ठहराते हुए यह दावा कि महात्मा गांधी के कहने पर सावरकर ने याचिका दी थी।