KGF की असली कहानी: हाथ से खोदकर सोना निकाल लेते थे कोलार के लोग, देखकर दंग रह गए अंग्रेज

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आज से सिनेमाघरों में एक बार फिर ‘सलाम रॉकी भाई’ गूंजेगा। कन्नड़ डायरेक्टर प्रशांत नील की फिल्म KGF-2 आज रिलीज हो रही हैं। सुपरस्टार यश की ये फिल्म कर्नाटक के कोलार में स्थित सोने की खदानों पर बेस्ड हैं। आपने KGF का पहला पार्ट भले देखा हो, लेकिन कोलार के खदानों की असली कहानी शायद ही जानते होंगे।

KGF यानी कोलार गोल्ड फील्ड्स:

कर्नाटक के दक्षिण-पूर्व इलाके में कोलार जिला स्थित हैं। जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर रोबर्ट्सनपेट एक तहसील हैं। यहीं पर सोने की खदान हैं। कोलार बेंगलुरु से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर हैं। कोलार गोल्ड फील्ड दुनिया की दूसरी सबसे गहरी सोने की खदान हैं, पहले नंबर पर दक्षिण अफ्रीका की पोनेंग गोल्ड माइंस हैं। जो दक्षिण अफ्रीका में जोहान्सबर्ग के दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं।

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हाथ से खोदकर सोना निकाल लेते थे लोग:

ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन ने चोल वंश की दंतकथाएं सुनी थीं कि लोग हाथ से खोदकर सोना निकाल लेते थे। इसी बात से प्रभावित होकर वॉरेन ने गांव वालों से कहा कि जो इस खदान से सोना निकालकर दिखाएगा, उसे इनाम दिया जाएगा। इनाम पाने की लालच में ग्रामीण लेफ्टिनेंट वॉरेन के सामने मिट्टी से भरी एक बैलगाड़ी लेकर आए।

गांव वालों ने वॉरेन के सामने मिट्टी को पानी से धुला तो उसमें सोने के अंश दिखाई दिए। उस समय वॉरेन ने करीब 56 किलो सोना निकलवाया। 1804 से 1860 तक काफी पड़ताल की गई, लेकिन कुछ खास हाथ नहीं लगा। इस शोध के चलते काफी लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। जिसके कारण वहां खुदाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

1871 में कोलार में फिर शुरू हुई रिसर्च:

न्यूजीलैंड से भारत आए रिटायर्ड ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली 1804 में ‘एशियाटिक जर्नल’ में छपी एक रिपोर्ट पढ़ने के बाद कोलार गोल्ड फील्ड को लेकर काफी उत्साहित हुए। उसने सोचा कि क्यों न मैं इसको शुरू करूं? लेवेली ने बेंगलुरु में रहने का फैसला लिया। लेवेली ने 1871 में बैलगाड़ी से करीब 100 किलोमीटर तक का सफर किया। सफर के दौरान लेवेली ने खनन की जगहों की पहचान की और सोने के भंडार वाली जगहों को खोजने में सफल रहे।

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लेवेली ने दो साल खोज को पूरा करने के बाद 1873 में मैसूर के महाराज की सरकार से कोलार में खनन करने का लाइसेंस मांगा। 2 फरवरी 1875 में लेवेली को खनन करने का लाइलेंस मिला, लेकिन माइकल लेवेली के पास उतना पैसा नहीं था तो उसने इंवेस्टर ढूंढे और खनन का काम जॉन टेलर और सन्स के हाथ में आ गया जो कि एक बड़ी ब्रिटिश कंपनी थी। ज्यादा समय उसका पैसा जुटाने और लोगों के काम करने के लिए तैयार करने में गुजरा। आखिरकार KGF से सोना निकालने का काम शुरू हो गया।

कोलार को कहा जाता था मिनी इंग्लैंड:

कोलार में सोने की खुदाई शुरू होने के बाद यहां की सूरत बदल गई। माइनिंग के साथ-साथ यहां डेवलपमेंट भी आया। यहां पर ब्रिटिश इंजीनियरों, अधिकारियों और दुनिया भर के अन्य लोगों के लिए बंगले, हॉस्पिटल, गोल्फ कोर्स और क्लब बनाए गए। जगह काफी ठंडी थी और वहां पर लोग ब्रिटिश अंदाज में घर बनाने लगे। इस निर्माण से KGF मिनी इंग्लैड जैसा लगने लगा।

लेकिन जो लोग माइन में काम करते थे उनके लिए हालात इंग्लैंड जैसे नहीं थे। वो कुली लेन में रहते थे, जहां पर सुविधाएं कम थीं। एक ही शेड में कई परिवार रहते थे और उनका जीवन बेहद कठिन था। ये जगह चूहों के हमले के लिए प्रसिद्ध थी। बताया जाता है यहां रहने वाले श्रमिकों ने एक साल में करीब 50 हजार चूहे मार दिए थे।

मोदी सरकार ने दिए KGF को फिर से खोलने के संकेत:

2001 में बंद होने के बाद 15 साल तक KGF ठप पड़ा रहा। साल 2016 में मोदी सरकार ने KGF में फिर से काम शुरू करने का संकेत दिया। साल 2016 में KGF के लिए नीलामी प्रक्रिया शुरू करने के लिए टेंडर निकालने के लिए कहा था। फिलहाल KGF को लेकर सारे संकेत ठंडे बस्ते में हैं। घोषणा का क्या हुआ इसका अभी कुछ पता नहीं हैं।

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