नई दिल्ली: महिला अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट (SC) का एक और ऐतिहासिक आदेश आया है। सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार है चाहे वो विवाहित हो या अविवाहित, सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं। गर्भपात के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के अन्तर्गत पति द्वारा यौन हमले को मेरिटल रेप के अर्थ में शामिल किया जाना चाहिए।
MTP कानून में विवाहित और अविवाहित महिला के बीच का अंतर कृत्रिम और संवैधानिक रूप से टिकाऊ नहीं है। यह इस रूढ़िवादिता को कायम रखता है कि सिर्फ विवाहित महिलाएं ही यौन गतिविधियों में लिप्त होती हैं। किसी महिला की वैवाहिक स्थिति उसे अनचाहे गर्भ को गिराने के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती। यहां तक कि अकेली और अविवाहित महिला को भी मेडिकल टर्मिनल ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के अन्तर्गत गर्भावस्था के 24 हफ्ते तक के नियमों के तहत गर्भपात का अधिकार है। यह अधिकार उन महिलाओं के साथ होगा जो अपने अवांछित गर्भाधारण को जारी रखने के लिए मजबूर हैं।
नियम 3 (B) के दायरे में एकल महिलाओं को शामिल करने का कोई औचित्य नहीं है और यह अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा। अविवाहित और एकल महिलाओं को गर्भपात करने से रोकना लेकिन विवाहित महिलाओं को अनुमति देना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। ये फैसला जस्जिट डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनाया है।
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पीठ 25 वर्षीय अविवाहित महिला द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें 24 सप्ताह की गर्भवस्था को समाप्त करने की मांग की गई थी, जो दिल्ली हाईकोर्ट के उक्त राहत देने से इनकार करने के आदेश के खिलाफ सहमति के रिश्ते से उत्पन्न हुई थी। यचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया कि वह 5 भाई-बहनों में सबसे बड़ी है और उसके माता-पिता किसान हैं। उसने प्रस्तुत किया कि आजीविका के स्रोत के अभाव में वह बच्चे की परवरिश और पालन-पोषण करने में असमर्थ होगी।
21 जुलाई, 2022 के एक विस्तृत आदेश द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राहत प्रदान की थी। सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर MTP अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधान की व्याख्या पर ASG ऐश्वर्या भाटी की सहायता मांगी थी। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को गर्भपात कराने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। यह कहा गया कि अविवाहित महिलाएं, जिनकी गर्भावस्था एक सहमति के संबंध से उत्पन्न होती है, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के तहत किसी भी खंड द्वारा पूरी तरह से कवर नहीं की जाती हैं। अदालत ने फैसला सुनाते हुए ये भी कहा कि आज क्या वर्ल्ड सेफ ऑबोर्शन डे है?