फर्श से अर्श तक तक हमारी बेटियां बुलंदियों पर हैं। कानूनी दाव-पेंच हो या सियासी सूझबूझ, खेल का मैदान हो या आसमान में फाइटर प्लेन उड़ाना, हर मोर्चे पर बेटियां अपना परचम लहरा रही हैं। 19 साल की मैत्री पटेल देश की सबसे कम उम्र की कॉमर्शियल पायलट हैं, तो शेफाली वर्मा टी20 वर्ल्ड रैंकिंग में नंबर वन हैं। मेघा राजगोपालन ने दुनिया के सामने चीन की पोल खोली, तो नीना गुप्ता ने 70 साल पुरानी गणित की पहेली सुलझाई। आज महिला Women दिवस Day पर ऐसी 22 बेटियों को जानिए, जिनकी कहानी पढ़कर गर्व से सीना चौड़ा हो जाता हैं…
जस्टिस बीवी नागरत्ना :
अगस्त 2021 में जस्टिस बीवी नागरत्ना सुप्रीम कोर्ट में जज बनीं। वे साल 2008 में कर्नाटक हाईकोर्ट में बतौर एडिशनल जज आई थीं। सीनियरिटी के हिसाब से वे 2027 में देश की पहली महिला चीफ जस्टिस बन सकती हैं। जस्टिस नागरत्ना 2012 में केंद्र को ब्रॉडकास्ट मीडिया को रेगुलेट करने के निर्देश देने वाली बेंच में शामिल थीं।
मेजर आइना राणा:
मेजर आइना राणा बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन यानी BRO की सड़क बनाने वाली कंपनी की कमान संभालने वाली पहली महिला अधिकारी हैं। फिलहाल वे भारत-चीन सीमा पर सड़क निर्माण में लगी हैं। राणा की तैनाती बदरीनाथ रोड पर स्थित हैं जो इंडो-चाइना बॉर्डर से जुड़ती हैं। यहां खररखाव बेहद चैलेंजिंग हैं। 272 सड़कें उनकी निगरानी में हैं।
मैत्री पटेल:
महज 19 साल की उम्र में मैत्री भारत की सबसे कम उम्र की कमर्शियल पायलट हैं। उनके पिता कांतिलाल पटेल किसान हैं और मां स्वास्थ्य विभाग में काम करती हैं। कांतिलाल ने बेटी को अमेरिका में पायलट ट्रेनिंग दिलाने के लिए अपनी जमीन बेच दी। ट्रेनिंग का 18 माह का कोर्स मैत्री ने सिर्फ 11 महीने में पूरा किया।
एनी सिन्हा रॉय:
एनी सिन्हा रॉय मुंबई मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन में प्रोजेक्ट सीनियर रेजिडेंट इंजीनियर हैं। वे देश की एकमात्र महिला सुरंग इंजीनियर हैं। मैकेनिकल इंजीनियर एनी ने 2009 में चेन्नई मेट्रो और 2015 में बेंगलुरु मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के साथ काम किया। उन्होंने गोदावरी नामक सुरंग-मशीन को अकेले ही चलाया और मीठी नदी के नीचे मुंबई मेट्रो के लिए बनाई जा रही 190 मीटर लंबी सुरंग तैयार की हैं। उन्हें 2018 में ‘इंजीनियर ऑफ द ईयर’ का सम्मान भी मिल चुका हैं।
इंदु मल्होत्रा:
पंजाब में पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में कथित चूक मामले में सुप्रीम कोर्ट की रिटायर जज इंदु मल्होत्रा जांच कर रही हैं। बेंगलुरु से ताल्लुक रखने वाली इंदु मल्होत्रा मार्च 2021 में ही रिटायर हुई हैं। वे देश की पहली महिला अधिवक्ता थीं, जो वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट की जज बनीं थीं। जस्टिस इंदु कई अहम मामलों में फैसला सुना चुकी हैं। इनमें केरल का सबरीमाला सबसे चर्चित रहा। इस केस में उन्होंने चार पुरुष जजों से अलग राय जाहिर की थी।
मंजुला प्रदीप:
सबसे वंचित तबकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली वकील और एक्टिविस्ट मंजुला गुजरात के दलित परिवार से हैं। भारत में दलित अधिकारों के सबसे बड़े संगठन नवसर्जन ट्रस्ट की वो एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रही हैं। 1992 में वे इस संगठन से जुड़ने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने नेशनल काउंसिल ऑफ वीमन लीडर्स की स्थापना की। वे खुद चार साल की उम्र में यौन हिंसा की शिकार हुई थीं, पड़ोस के चार मर्दों ने उन्हें शिकार बनाया था।
कृति कारंत:
कृति वाइल्ड इनोवेटर अवार्ड 2021 जीतने वाली पहली भारतीय और एशियाई महिला हैं। यह अवॉर्ड वाइल्ड एलिमेंट फाउंडेशन की ओर से दिया जाता हैं। 41 साल की कृति 2001 से मानव-वन्यजीवों के बीच बढ़ते मुठभेड़ पर काम कर रही हैं और उनकी कोशिश इस मुठभेड़ को कम करना हैं। वे सेंटर फॉर वाइल्डलाइफ स्टडीज में चीफ कन्सर्वेशन साइंटिस्ट हैं। साल 2020 में कृति वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।
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मेघा राजगोपालन:
मेघा राजगोपालन की रिपोर्ट्स ने चीन के डिटेंशन कैंपों में लोगों को दी जा रही यातना की सच्चाई को दुनिया के सामने उजागर किया। उन्होंने सैटेलाइट तस्वीरों का एनालिसिस कर बताया कि चीन ने कैसे लाखों उइगुर मुसलमानों को कैद करके रखा हैं। इसके लिए उन्हें 2021 का पुलित्जर पुरस्कार मिला। चीन, थाईलैंड और अफगानिस्तान जैसे 23 से अधिक देशों में रिपोर्टिंग कर चुकी हैं। वर्तमान में वे बजफीड में टेक रिपोर्टर हैं। फेसबुक और श्रीलंका में हिंसा के बीच संबंधों को उजागर करने के लिए 2019 में मिरर अवार्ड भी उन्हें मिल चुका हैं।
प्रभाबेन शाह:
प्रभाबेन को हाल ही में 92 साल की उम्र में पद्मश्री से सम्मानित किया गया हैं। उन्होंने जरूरतमंदों के लिए स्कूल, कैंटीन चलाने में जीवन समर्पित कर दिया। 1984 में भोपाल गैस त्रासदी से लेकर हाल ही में केरल में आई बाढ़ जैसी आपदा तक उन्होंने कई मौकों पर जरूरतमंदों के लिए क्लोथ बैंक चलाए। जब महात्मा गांधी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था, तब प्रभाबेन 12 साल की थीं और इस अभियान से जुड़ गई थीं। वे बारदोली की स्वराज आश्रम से भी जुड़ी रहीं। स्वदेशी आंदोलन के दौरान उन्होंने कई महीनों तक जूट से बने बिस्तरों का ही इस्तेमाल किया था।